रात में की जाती है कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
खीरे के बिना अधूरा माना जाता हैं श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
देहरादून। देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुए बताया कि कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के साथ रोहिणी नक्षत्र में मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु ने धरती पर मौजूद लोगों को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए कृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था। हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का विशेष महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण के भक्त इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। संपूर्ण विश्व में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं अमर हैं। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि में हुआ था, इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा रात में की जाती है। इस दिन श्रृंगार, भोग के साथ बहुत सी चीजें पूजा में इस्तेमाल की जाती हैं। इसके अलावा कृष्ण जन्माष्टमी पूजा में खीरे का इस्तेमाल जरूर होता है। कहा जाता है कि खीरे के बिना श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव अधूरा माना जाता है। जन्माष्टमी पर लोग भगवानय श्रीकृष्ण को खीरा चढ़ाते हैं। मान्यता है कि खीरे से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों के सारे दुख दर्द हर लेते हैं। जन्माष्टमी के दिन ऐसा खीरा लाया जाता है, जिसमें थोड़ा डंठल और पत्तियां लगी होती हैं। जन्माष्टमी के दिन खीरे को काटने की प्रक्रिया को नाल छेदन कहा जाता है। इस दिन खीरे को भगवान कृष्ण के पास रख दें। रात में जैसे ही 12 बजे यानी भगवान कृष्ण का जन्म हो, उसके तुरंत बाद एक सिक्के की मदद से खीरा और डंठल को बीच से काट दें। वहीं कान्हा के जन्म के बाद शंख जरूर बजाएं।