ग्रामीणों और भेड़ बकरियों के माइग्रेशन से गुलजार हो गए उच्च हिमालयी गांव
सड़क बनने से पूर्व ग्रामीणों को माइग्रेशन में कम से कम 15 दिन लग जाते थे ।
धारचूला : उच्च हिमालयी गांव गुलजार होने लगे हैं। चीन और नेपाल सीमा से लगी व्यास घाटी के सभी सात गांवों के ग्रामीण ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए अपने गांवों तक पहुंच चुके हैं। पैदल मार्ग से जाने वाले जानवर उच्च हिमालयी बुग्यालों में नजर आने लगे हैं।तवाघाट-लिपुलेख मार्ग बनने से व्यास घाटी के सात गांवों के ग्रामीणों को अब माइग्रेशन के लिए पहले जैसी मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है। सड़क बनने से पूर्व ग्रामीणों को माइग्रेशन में कम से कम 15 दिन लग जाते थे । पूरे परिवार और पालतू जानवरों के साथ माइग्रेशन करने में ग्रामीण पड़ाव दर पड़ाव कर अपने गांव तक पहुंचते थे। वर्ष 2020 में लिपुलेख मार्ग बनने से अब ग्रामीण स्वयं और सामान वाहनों से ले जाते हैं और जानवर पैदल मार्ग से जाते हैं। जिनके साथ परिवार का एक सदस्य रहता है।व्यास घाटी के सभी सात गांव बूंदी, गब्र्याग , नपलच्यु और गुंजी तवाघाट -लिपुलेख मार्ग से जुड़े हैं जबकितीन गांव नाबी, रौंगकोंग और कुटी गुंजी आदि कैलास मार्ग से जुड़े हैं। कुटी गांव सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित गांव है। इस गांव के ग्रामीण ग्रीष्मकालीन प्रवास में सबसे देर से और शीतकालीन प्रवास के लिए सबसे पहले माइग्रेशन करते हैं। 12800 फीट की ऊंचाई पर स्थित कुटी गांव में अभी भी बर्फ जमी है और शीतकाल में यहां अक्टूबर प्रथम सप्ताह से ही बर्फबारी होने लगती है।इधर कुटी गांव के ग्रामीण भी ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए अपने गांव पहुंच चुके हैं। दूसरी तरफ दारमा घाटी में भी माइग्रेशन हो रहा है। मुनस्यारी की रालम घाटी और जोहार घाटी के ग्रामीण भी माइग्रेशन के लिए जाने लगे हैं। ग्रामीणों के अपने गांवों में पहुंचते ही उच्च हिमालय में चहल पहल होने लगी है। सितंबर से लेकर मध्य अक्टूबर तक ग्रामीण उच्च हिमालय में प्रवास करेंगे ।काली नदी पार नेपाल की व्यास गांवपालिका के छांगरु और टिंकर के ग्रामीण भी भारत के रास्ते माइग्रेशन कर रहे हैं। दोनो गांवों के अधिकांश परिवार अपने गांवों तक पहुंच चुके हैं। नेपाल में जानवरों के चलने योग्य मार्ग नहीं होने से दोनों गांवों के ग्रामीण भारत के रास्ते ही माइग्रेशन कर रहे हैं। उनकी मांग पर भारतीय प्रशासन ने लगभग सात सौ ग्रामीणों को इनर लाइन परमिट जारी किया । परमिट जारी होने के बाद नेपाल के ग्रामीणों का माइग्रेशन चला।