उत्तराखंड समाचारधर्म

धूमधाम से मनाया गया होली का पावन पर्व

द्रोण नगरी मे धूमधाम से मनाया गया रंगों का महापर्व होली

देहरादून। उल्लास, उमंग, सौहार्द एवं सामाजिक समरसता के प्रतीक रंगोत्सव “होली” का पर्व द्रोण नगरी देहरादून मे धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर कामना की गई की ‘‘हर्ष और उल्लास के रंगों से भरपूर होली का पर्व सभी के जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली के रंग लेकर आये। इस अवसर पर हम घृणा, अहंकार एवं बुराइयों का त्याग कर सामाजिक सद्भाव तथा नवीन उत्साह व उमंग से होली का स्वागत करें। हम आपसी मतभेदों और कटुता को भुलाकर एक दूसरे के प्रति प्रेम-भाव और सहयोग को प्रोत्साहित कर सुरक्षित प्रकार से होली मनाएं। होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है। यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
आज होली के पावन पर्व के अवसर पर राजधानीवासियों ने एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल लगाया, ढोल बजा कर होली के गीत गाये और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया गया। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता रहा। होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है। होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button