उत्तराखंड समाचार

किसी बच्चे को स्कूल में पीटा या परेशान किया जाता है तो आईपीसी में कार्यवाही का प्रावधान

बच्चों की सेफ्टी और सिक्युरिटी को सुनिश्चित करने के लिए एक ठोस और समग्र कानून की जरूरत

देहरादून। स्कूल में बच्चों के साथ की जाने वाली किसी भी तरह की प्रताड़ना को कॉर्पोरल पनिशमेंट माना गया है। अगर बच्चों का शारीरिक तौर पर किसी भी तरह से शोषण किया जाता है तो वह कॉर्पोरल पनिशनमेंट है। मिसाल के तौर पर चांटा मारना, कान खींचना आदि इसी के दायरे में आता है। इसके अलावा अगर उसे किसी खास पोजिशन में खड़ा रखा जाता है, बेंच पर खड़ा किया जाता है, गलत तरीके से उसको पुकारा जाता है या फिर ठेस पहुंचाने वाला कमेंट किया जाता है या कुछ भी ऐसा किया जाता है, जो बच्चे को शारीरिक और मानसिक तौर पर नुकसान पहुंचता है तो वह कॉर्पोरल पनिशनमेंट माना जाएगा। इसके तहत दोषी के खिलाफ सख्त एक्शन का प्रावधान किया गया है। राइट टु एजुकेशन ऐक्ट में भी कॉर्पोरल पनिशमेंट का जिक्र किया गया है। इन नियमों को लागू करना स्कूल की जिम्मेदारी है। इस मामले में दोषी टीचर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के अलावा उसे नौकरी तक से बर्खास्त किया जा सकता है।

राइट टु एजुकेशन एक्ट की धारा-17

अगर कोई टीचर किसी स्टूडेंट को मानसिक या शारीरिक तौर पर परेशान करता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। इसके लिए कानून में प्रावधान है कि सर्विस रूल्स के हिसाब से जिम्मेदार स्कूल स्टाफ या टीचर पर कार्रवाई हो। ऐसे केसों में पैरंट्स प्रिंसिपल या एजुकेशन विभाग में सीधे शिकायत कर सकते हैं। दोषी पाए गए टीचर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के अलावा उन्हें नौकरी तक से बर्खास्त किया जा सकता है।

आईपीसी में प्रावधान

अगर किसी बच्चे को स्कूल में पीटा या परेशान किया जाता है तो पैरंट्स स्कूल प्रशासन के अलावा, नैशनल कमिशन फॉर प्रोटक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) और राज्य सरकार के एजुकेशन डिपार्टमेंट में शिकायत कर सकते हैं। पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकती है। अगर बच्चे के साथ गंभीर मारपीट का मामला पेश आता है, तो पैरंट्स आईपीसी की धारा-323 (मारपीट), 324 (जख्मी करना), 325 (गंभीर जख्म पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज करा सकते हैं। धारा-325 में दोषी पाए जाने पर 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। अगर बच्चे पर जानलेवा हमला किया गया हो तो फिर धारा-307 लगाया जा सकता है इसमें अधिकतम 10 साल या फिर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

जेजे एक्ट और पॉक्सो एक्ट

जेजे एक्ट की धारा-23 कहती है कि जिसके पास भी बच्चे का चार्ज होगा, उसका उस पर कंट्रोल होगा। इस दौरान बच्चे को अगर कोई पीटता है या नुकसान पहुंचाता है, या उसकी लापरवाही से बच्चे की प्रताड़ना होती है या फिर किसी भी तरह की लापरवाही से बच्चे को मानसिक या शारीरिक नुकसान होता है तो ऐसे शख्स जिसके पास वह बच्चा है उसे दोषी पाए जाने पर सजा होती है। इस मामले में अधिकतम 6 महीने कैद की सजा का प्रावधान है। जेजे एक्ट की धारा-2 इस बात को परिभाषित करता है कि गार्जियन कौन है। इसके तहत बताया गया है कि जो नेचरल गार्जियन है वह गार्जियन होता है या फिर जिसके पास बच्चे का कस्टडी होता है वह उस वक्त गार्जियन के रोल में होता है। उसकी ड्यूटी होती है कि वह बच्चे को प्रोटेक्ट करे और नुकसान न पहुंचाए। 18 साल से कम उम्र में नाबालिग बच्चा ही कहा जाएगा। इस दौरान बच्चे चाहे वह लड़का हो या लड़की, कोई भी अगर बच्चे के साथ सेक्सुअल नेचर का अपराध करता है तो उसके खिलाफ पोक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई होती है। पोक्सो मामले में अधिकतम उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।

किसी भी तरह की प्रताड़ना

स्कूल में बच्चों के साथ की जाने वाली किसी भी तरह की प्रताड़ना को कॉर्पोरल पनिशमेंट माना गया है। अगर बच्चों का शारीरिक तौर पर किसी भी तरह से शोषण किया जाता है तो वह कॉर्पोरल पनिशनमेंट है। मिसाल के तौर पर चांटा मारना, कान खींचना आदि इसी के दायरे में आता है। इसके अलावा अगर उसे किसी खास पोजिशन में खड़ा रखा जाता है, बेंच पर खड़ा किया जाता है, गलत तरीके से उसको पुकारा जाता है या फिर ठेस पहुंचाने वाला कमेंट किया जाता है या कुछ भी ऐसा किया जाता है, जो बच्चे को शारीरिक और मानसिक तौर पर नुकसान पहुंचता है तो वह कॉर्पोरल पनिशनमेंट माना जाएगा। इसके तहत दोषी के खिलाफ सख्त एक्शन का प्रावधान किया गया है। राइट टु एजुकेशन ऐक्ट में भी कॉर्पोरल पनिशमेंट का जिक्र किया गया है। इन नियमों को लागू करना स्कूल की जिम्मेदारी है। इस मामले में दोषी टीचर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के अलावा उसे नौकरी तक से बर्खास्त किया जा सकता है।

एसपीपीसीआर की गाइडलाइंस

इसके तहत बच्चों को प्रोटेक्शन के लिए तमाम गाइडलाइंस जारी किया गया है। इसके तहत स्कूल में कोरपोरल पनिशमेंट से लेकर बच्चों की सेफ्टी के लिए गाइडलाइंस बनाई गई है। एनसीपीसीआऱ (नैशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स) ने निर्देश जारी कर देश भर के स्कूलों से कहा था कि वह बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए। स्कूल में जिन स्टाफ की भर्ती की जाती है उसका सही तरह से वेरिफिकेशन किया जाए। तमाम स्टाफ से नियुक्ति के वक्त एफिडेविट लिया जाए कि वह पहले से जेजे एक्ट और पोक्सो एक्ट के तहत आरोपी नहीं है। स्कूल के प्रोमोटर बच्चों को जागरूक करें।

सीबीएसई की गाइडलाइंस

बच्चों की सेफ्टी को लेकर सीबीएसई ने गाइडलाइंस जारी की है और कहा है कि अगर इसका किसी भी तरह से उल्लंघन होता है तो स्कूल की मान्यता भी रद्द हो सकती है। गाइडलाइंस के मुताबिक स्कूल मे काम करने वाले स्टाफ का स्थानीय पुलिस से वेरिफिकेशन होना चाहिए और सेफ्टी ऑडिट कराया जाना चाहिए। नॉन टीचिंग स्टाफ जैसे बस कंडक्टर, ड्राइवर व अन्य सपोर्ट स्टाफ का पूरी सावधानी के साथ वेरिफिकेशन कराया जाए। स्कूल में बाहरी लोगों की एंट्री को मॉनिटर किया जाए। स्टाफ की ट्रेनिंग हो कि बच्चों को शोषण से बचाया जा सके। सेक्सुअल हैरसमेंट की शिकायत कमिटी और पोक्सो से संबंधित कमिटी के बारे में जानकारी नोटिस बोर्ड पर लगाई जाए। स्कूलों में बच्चों की सेफ्टी पूरी तरह से स्कूल अथॉरिटी के जिम्मेदारी होगी।

सुप्रीम कोर्ट की सेफ्टी गाइडलाइंस

आग और अन्य आपदा के कारण बच्चों को मौत के मुंह से बचाने और उन्हें घायल होने से बचाने के लिए तमाम कदम उठाने की जरूरत है। स्कूल सेफ्टी पॉलिसी तीन स्तरीय लागू किया जाएगा। एनडीएमए, स्टेट लेवल पर एसडीएमए और जिला लेवल पर डीडीएमए (जिला आपदा प्रबंधन अथॉरिटी) होगा। डीडीएमए में डीएम चेयरपर्सन होंगे और साथ ही उसमें चीफ मेडिकल ऑफिसर और एसपी मेंबर होंगे। ये कमिटी स्कूल सेफ्टी पॉलिसी लागू कराएगी और मॉनिटर करेगी।

स्कूली बस के लिए गाइडलाइंस

राजधानी दिल्ली में 1997 में यमुना में स्कूली बस गिरी थी, जिसमें 28 स्कूली बच्चों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसी साल स्कूली बसों के लिए गाइडलाइंस जारी की थीं। स्कूली बस को चलाने वाले ड्राइवर का अनुभव 5 साल से ज्यादा का होना चाहिए। वाहन की स्पीड 40 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। हर वाहन में प्राथमिक उपचार की सुविधा के लिए फर्स्ट एड बॉक्स होने चाहिए। आग बुझाने के उपकरणों का इंतजाम होना चाहिए। स्कूली बच्चों को ले जाने वाले वाहनों की खिड़कियों पर ग्रिल होनी चाहिए। वाहन में पीने के पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। बस विशेष रंग यानी येलो कलर की होनी चाहिए और उस पर स्कूल का नाम और फोन नंबर होना चाहिए। सीटों की कुल क्षमता जितनी होगी, उससे 20 फीसदी ज्यादा बच्चे ले जाए जा सकते हैं, उससे ज्यादा नहीं।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश बाध्यकारी

सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस का पालन नही करने के मामले में शिकायती ऐसे स्कूल के खिलाफ कंटेप्ट ऑफ कोर्ट के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद-142 के तहत जो आदेश पारित करती है वह भारत में प्रत्येक अथॉरिटी पर बाध्यकारी है। उसे लागू कराना अथॉरिटी की जिम्मेदारी है। अगर कोई उसका पालन नहीं करता है तो उस पर अवमानना की कार्रवाई हो सकती है।

मौजूदा समय में बच्चों की सेफ्टी और सिक्युरिटी को सुनिश्चित करने के लिए एक ठोस और समग्र कानून की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि इन तमाम गाइडलाइंस को कानूनी जामा पहना दे।

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