उत्तराखंड समाचार

पांच दिवसीय रेस्क्यू रिट्रीट का आयोजन

भारतीय संस्कृति दिव्यता और समर्पण की संस्कृति है

ऋषिकेश, 11 अप्रैल। परमार्थ निकेतन में मानव तस्करी से पीड़ित लड़कियों  के लिये पांच दिवसीय रेस्क्यू रिट्रीट का आयोजन परमार्थ निकेतन, डिवाइन शक्ति फांउडेशन, हरिजन सेवक संघ और रेस्क्यू फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। मुम्बई और दिल्ली से आयी 50 से अधिक लड़कियों के लिये परमार्थ निकेतन के आध्यात्मिक वातावरण में भारतीय संस्कृति, हवन, यज्ञ, योग, ध्यान और सत्संग आदि अनेक आध्यात्मिक गतिविधियों का आयोजन किया गया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने रेस्क्यू की गयी लड़कियों को सम्बोधित कर ‘नारी ही नारायणी’ का संदेश देते हुये नारियों को अपनी शक्ति को पहचानने और सही मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते हुये कहा कि आपने जीवन में जो भी कर्म किये हैं उसका फल हमें ही भोगना पड़ता है इसलिये कर्म ऐसे करें जो हमें दिव्यता की ओर लेकर जायें। अक्सर युवा भव्यता की ओर आकर्षित होने लगते हैं परन्तु भव्यता का आकर्षण थोड़ी देर का होता है लेकिन दिव्यता और समर्पण सदैव साथ रहते हंै। स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति दिव्यता और समर्पण की संस्कृति है और नारी का शरीर देवालय है अतः उसे अपवित्र नहीं होने देना है। नारी है तो सृष्टि है। नारी जैसी होगी वैसे ही सृष्टि होगी आप सब इसलिये पवित्र पथ पर आगे बढ़ते रहंे। स्वामी जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन आप सब का घर है, जब आप चाहे यहां आ कर रह सकती हैं। ये दर आपके लिये खुला है और हमेशा खुला ही रहेगा। परमार्थ निकेतन आप सब का परिवार है और हम सब आप के साथ हैं। जीवन के किसी भी मोड़ पर जब लगे कि किसी चीज की जरूरत है तो आप कभी भी परमार्थ निकेतन आ सकती हैं। स्वामी जी ने कहा कि आप यहां से दिव्यता के साथ एक दिव्य सोच लेकर जायंे ये सोच ही तो है जो पूरा जीवन बदल देती है; नज़र ही तो है जिससे नजारे बदल जाते हैं इसलिये हमें सोच को बदलना है, अपनी नज़र को बदलना है और अपनी दृष्टि को बदलना है। डा साध्वी भगवती सरस्वती जी ने रेस्क्यू टीम को सम्बोधित करते हुये कहा कि आप सभी दिव्यता से युक्त हंै। शरीर और मन के माध्यम से ऐसा कोई कार्य न करें जिससे बाद में पछताना पड़े क्योंकि शरीर देवालय है तथा भटके हुये मन को साधने का सबसे उत्तम मार्ग है आध्यात्मिक जीवन। रेस्क्यू की गयी कई बच्चियों ने कहा कि परमार्थ निकेतन ऋषिकेश आकर हमारा तो जीवन ही बदल गया। जीवन के प्रति हमारी दृष्टि ही बदल गयी। पूज्य महाराज जी का सान्निध्य पाकर और उद्बोधन सुनकर तो हमारा जीवन जीने  का तरीका ही बदल गया। साध्वी जी और पूज्य स्वामी के साथ हमें पांच दिनों तक सत्संग करने का अवसर प्राप्त हुआ जिससे हमारे आन्तरिक चक्षु खुल गये और हमें अपने जीवन का उद्देश्य मिल गया। रेस्क्यू की गयीं कई बच्चियों ने कहा कि परमार्थ निकेतन आकर हमने हिन्दू धर्म, योग, आध्यात्मिक जीवन और भारतीय संस्कृति के बारे में जाना। यहां आकर हमें लगा कि हमें अपना जीवन समाज की सेवा में समर्पित करना चाहिये। अब भूल कर भी हमें उस गलत मार्ग पर नहीं जाना है, जहां से हम वापस आये हंै। रेस्क्यू की गयी लड़कियों ने कहा कि हम परमार्थ निकेतन से जाना नहीं चाहते, हम यहीं पर रहना चाहते हैं। यहां आकर पहली बार हमें सम्मान, अपनी गरिमा और आत्मीयता का अहसास हुआ। रेस्क्यू की गयी लड़कियों को योग, सिलाई, बैग बनाना, कला और शिल्प, ब्यूटीशियन प्रशिक्षण, कंप्यूटर प्रशिक्षण, मार्शल आर्ट आदि की औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करने की योजना बनायी गयी है। रेस्क्यू फाउंडेशन की प्रमुख श्रीमती त्रिवेणी आचार्य जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन में पूज्य स्वामी जी और साध्वी ने पीड़ितों लड़कियों को प्रेम और करुणा के साथ सशक्त बनने का जो संदेश दिया सचमुच उससे इन लड़कियों का जीवन ही बदल गया। परमार्थ निकेतन परिवार द्वारा जो सहयोग प्राप्त हुआ उसके लिये उन्होंने आभार व्यक्त किया।

 

 

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