150 वर्ष पुराने तीन कानूनों में पहली बार परिवर्तन किए गए : अमित शाह
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि 35 सांसदों ने इन विधेयकों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
नई दिल्ली। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज लोक सभा में भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 पर चर्चा का जवाब दिया, चर्चा के बाद सदन ने तीनों विधेयकों को पारित कर दिया। चर्चा के बाद सदन ने तीनों विधेयकों को पारित कर दिया।
चर्चा का जवाब देते हुए श्री अमित शाह ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली को चलाने वाले लगभग 150 वर्ष पुराने तीनों कानूनों में पहली बार प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारतीयता, भारतीय संविधान औऱ भारत की जनता की चिंता करने वाले परिवर्तन किए गए हैं। उन्होंने कहा कि 1860 में बने भारतीय दंड संहिता का उद्देश्य न्याय देना नहीं बल्कि दंड देना था। उन्होंने कहा कि अब उसकी जगह भारतीय़ न्याय संहिता, 2023, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 इस सदन की मान्यता के बाद पूरे देश में अमल में आएंगे। उन्होंने कहा किभारतीय आत्मा के साथ बनाए गए इन तीन कानूनों से हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि 35 सांसदों ने इन विधेयकों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने गुलामी की मानसिकता और निशानियों को जल्द से जल्द मिटाने और नए आत्मविश्वास के साथ महान भारत की रचना का रास्ता प्रशस्त करने का आग्रह रखा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने लाल किले की प्रचारी से कहा था कि कोलोनियल कानूनों से इस देश को जल्दी मुक्ति मिलनी चाहिए औऱ उसी के तहत गृह मंत्रालय ने 2019 से इन तीनों पुराने कानूनों में परिवर्तन लाने के लिए गहन विचार-विमर्श शुरू किया था। श्री शाह ने कहा कि ये कानून एक विदेशी शासक ने अपने शासन को चलाने और गुलाम प्रजा को गवर्न करने के लिए बनाए गए थो। उन्होंने कहा कि इन तीनों पुराने कानूनों के स्थान पर लाए जा रहे ये नए कानून हमारे संविधान की तीन मूल भावनाओं- व्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार और सबके साथ समान व्यवहार के सिद्धांतों के आधार पर बनाए गए हैं। गृह मंत्री ने कहा कि वर्तमान तीनों कानूनों में न्याय की कल्पना ही नहीं की गई है और दंड देने को ही न्याय माना गया है। उन्होंने कहा कि दंड देने का उद्देश्य पीड़ित को न्याय देना और समाज में ऐसा उदाहरण स्थापित करना है ताकि कोई इस प्रकार की गलती नकरे। श्री शाह ने कहा कि इन तीनों कानूनों का आज़ादी के इतने वर्षों बाद पहली बार मानवीकरण हो रहा है।