इतिहास में आज का दिन हर भारतीय के लिए काफी महत्वपूर्ण : सचिन गुप्ता
भारत के गौरव तिरंगे का अंगीकरण दिवस
देहरादून, 22 जुलाई। भारत का राष्ट्रीय ध्वज अंगीकरण दिवस 1947 के उस दिन को याद करता है जब संविधान सभा ने अपने वर्तमान तिरंगे के रूप में राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया था। यह हर वर्ष 22 जुलाई को राष्ट्रीय ध्वज के लिए गर्व और सम्मान की भावना भावना प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य सचिन गुप्ता ने तिरंगे का अंगीकरण दिवस के अवसर पर कहा की इतिहास में आज का दिन हर भारतीय के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। रंग, रूप वेष, भूषा से चाहे हम कितने भी अनेक हो, लेकिन तिरंगे के नीचे जब खड़े होते हैं तो हम एक हैं, भारतीय हैं। आज उसी भारत के गौरव, तिरंगे का अंगीकरण दिवस है। 22 जुलाई 1947 में भारतीय संविधान सभा की बैठक में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था, जो 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पहले हुई थी।
राष्ट्रीय ध्वज शुरुआत में कई परिवर्तनों से हो कर गुजरा। स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के दौरान कई अलग-अलग ध्वजों का प्रयोग किया गया।22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। वर्तमान में भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी हरियाली, उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
सचिन गुप्ता ने कहा की भारत में राष्ट्रीय ध्वज अंगीकरण दिवस को राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करने और इसके महत्व को याद करने के लिए मनाया जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सरदार वल्लभभाई पटेल और अन्य लोगों ने राष्ट्र के लिए अपना जीवन अर्पित किया। भारतीय संघ का ध्वज या जिसे प्यार से तिरंगा कहा जाता है, यह न केवल भारत के संघ का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि भारत के विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का भी प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन को राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान में मनाया जाता है, साथ ही जाति, पंथ और धर्म के मतभेदों के बावजूद राष्ट्रीय एकता को याद करने के लिए मनाया जाता है। राष्ट्रगान के साथ ध्वजारोहण और गायन के अलावा, एकता, अखंडता और सांप्रदायिक सद्भाव के विषय पर आधारित कई कार्यक्रम पूरे देशभर में आयोजित किए जाते हैं।
वर्ष 2002 से पहले, भारत की आम जनता के लोग केवल गिने चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़ सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहरा नहीं सकते थे। लेकिन एक याचिका पर 26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्टरी में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है, बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें। सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।