उत्तराखंड समाचार

गांव का नाम बौना पर सेब का आकार व स्वाद लाजबाव

बाजार नही मिलने से यहां पर ग्रामीणों ने सेब उत्पादन बंद कर दिया था।

मुनस्यारी: तहसील मुनस्यारी के नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बौना गांव अपने लाजबाव स्वाद वाले सेब के लिए प्रसिद्ध रहा है। बाजार नही मिलने से यहां पर ग्रामीणों ने सेब उत्पादन बंद कर दिया था। इस बीच झापुली तक सड़क बनने के बाद तथा बौना तक स्वीकृत सड़क को लेकर एक बार फिर ग्रामीण सेब उत्पादन की तरफ उन्मुख हुए हैं। बौना गांव के खेतों में फिर से सेब तैयार होने लगे हैं। सेब के तीन बागानों में सेेब उत्पादन होने लगा है। अंतर बस यही है कि अब बौना का वह पुराना सेब नहीं अपितु नई प्रजाति का सेब तैयार हो रहा है।बौना में उत्पादित सेब की 1980 से पूर्व धमक थी। तब बौना सड़क मार्ग से 66 किमी की दूरी पर था। पेड़ों में तैयार होने वाले सेब गांव सहित आसपास के गांवों तक पहुंचते थे। तत्कालीन जिला उद्यान अधिकारी ने तब बौना के सेब को मुंबई में आयोजित सेब प्रदर्शनी में पहुंचाया। जहां पर बौना के सेब ने ग्रेडिंग बदल दी।सेब को प्रदर्शनी तक पहुंचाने का प्रयास करने वाले मुनस्यारी के पूर्व ब्लॉक प्रमुख कुंदन सिंह टोलिया बतात हैं कि सेब की ग्रेडिंग के लिए तीन सांचे बने थे, जिसमें तीन आकार के सेब की ग्रेडिंग होती थी। जब बौना के सेब को सबसे बड़े सांचे में डाला गया तो सांचा छोटा पड़ गया और बौना का सेब आकार में सबसे बड़ा सेब घोषित किया गया।इस प्रकरण के बाद बौना के सेब को बड़े बाजार तक पहुंचाने का प्रयास किया। ग्रामीण घोड़े, खच्चरों और बकरियों की पीठ पर ढोकर 22 किमी दूर मदकोट तक लाए। मदकोट से जौलजीबी 44 किमी दूर तक सेब को ढोने के लिए भाड़ा नहीं रहा। सरकार स्तर से भी कोई मदद नहीं की गई।सैकड़ों क्विंटल सेब मदकोट में सड़ गया। तब से ग्रामीणों ने सेब उत्पादन से तौबा कर ली। अन्यथा इस गांव में सेब के फल आने पर टहनियां फलों के भार से इतना झुक जाती थी कि फल उत्पादक लकड़ी के खंभों का सहारा देकर टहनियां को टूटने से बचाते थे।

 

 

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