यह पुरस्कार इस युद्ध, जिसमें वे शहीद हुये, के समाप्त होने के एक सप्ताह से भी पहले १६ सितम्बर १९६५ को घोषित हुआ।
अपनी इस बटालियन के साथ आगरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, नेफा और रामगढ़ में भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दीं।
देहरादून 1 जुलाई। नेताजी संघर्ष समिति के कार्यालय कांवली रोड पर महान क्रांतिकारी वीर अब्दुल हमीद की जयंती के अवसर पर उन्हें याद किया। इस अवसर पर समिति के प्रभात डंडरियाल ने कहा की अब्दुल हमीद मसऊदी का जन्म आज ही के दिन 01 जुलाई 1933 को हुआ था। वह भारतीय सेना की ४ ग्रेनेडियर में एक सिपाही थे, जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान खेमकरण सैक्टर के आसल उत्ताड़ में लड़े गए युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति प्राप्त की। जिसके लिए उन्हें मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र मिला। यह पुरस्कार इस युद्ध, जिसमें वे शहीद हुये, के समाप्त होने के एक सप्ताह से भी पहले १६ सितम्बर १९६५ को घोषित हुआ। शहीद होने से पहले परमवीर अब्दुल हमीद मसऊदी ने मात्र अपनी “गन माउन्टेड जीप” से उस समय अजेय समझे जाने वाले पाकिस्तान के “पैटन टैंकों” को नष्ट किया था। अब्दुल हमीद मसऊदी २७ दिसम्बर १९५४ को भारतीय सेना के ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए। बाद में उनकी तैनाती रेजीमेंट के ४ ग्रेनेडियर बटालियन में हुई जहां उन्होंने अपने सैन्य सेवा काल तक अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने अपनी इस बटालियन के साथ आगरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, नेफा और रामगढ़ में भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दीं। भारत-चीन युद्ध के दौरान अब्दुल हमीद मसऊदी की बटालियन सातवीं इंफैन्ट्री ब्रिगेड का हिस्सा थी जिसने ब्रिगेडियर जॉन दलवी के नेतृत्व में नमका-छू के युद्ध में पीपल्स लिबरेशन आर्मी से लोहा लिया। इस युद्ध में सेकेंड लेफ्टिनेंट जी.वी.पी. राव को मरणोपरांत अद्भुत शौर्य और वीरता के प्रदर्शन के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। अब्दुल हमीद मसऊदी के सम्मान से पहले इस बटालियन को भारत की स्वतंत्रता के पश्चात मिलने यह सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार था। उन्होंने अपने सेवा काल में सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल से सम्मान प्राप्त किया था।
इस अवसर पर आरिफ़ वारसी ने कहा कि हम वीर अब्दुल हमीद के योगदान को कभी नहीं भूल सकते, क्योंकि वह छोटी आयु में ही देश के लिए कुछ अच्छा करने की चाह रखते थे। इसी के तहत मौका मिलते ही वह देश के लिएं लड़े और देश का नाम रोशन कर शहीद हुए। मगर अफसोस इस बात का है कि आज की हमारी युवा पीढ़ी यह भी नहीं जानती के वीर अब्दुल हमीद कौन थे। अब्दुल हमीद को याद करने वालों में प्रभात डंडरियाल, आरिफ़ वारसी, प्रदीप कुकरेती, सुशील विरमानी, संदीप गुप्ता, दानिश नूर, नूर नाज,रफीक अहमद सिद्दीकी, विपुल नौटियाल, इम्तियाज अहमद आदि उपस्थित रहे।