मंत्री ने किया सुबनसिरी निचली पनबिजली परियोजना का दौरा
पनबिजली के बिना चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा संभव नहीं
नई दिल्ली। केंद्रीय बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने अरूणाचल प्रदेश/असम में स्थित 2000 मेगावाट क्षमता वाली सुबनसिरी निचली पनबिजली परियोजना का दौरा किया। उन्होंने सुबनसिरी परियोजना निर्माण स्थल अर्थात्बांध और असम के गेरूकामुख में डायवर्जन सुरंग का निरीक्षण किया। उन्होंने वर्तमान में चल रही निर्माण गतिविधियों का जायजा लिया और उन्हें प्रगति के बारे में जानकारी दी गई। दिनभर के दौरे के बाद उन्होंने समीक्षा बैठक की जिसमें उन्हें परियोजना की चुनौतियों का समाधान करने के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों के बारे में जानकारी दी गई। एनएचपीसी के अधिकारियों और प्रमुख कार्यों के ठेकेदारों के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए श्री सिंह ने सभी को परियोजना को निर्धारित समय पर पूरा करने के लिए अधिक उत्साह के साथ काम करने का निर्देश दिया। परियोजना की समीक्षा पर संतोष व्यक्त करते हुए श्री सिंह ने मीडिया को बताया कि पनबिजली परियोजनाओं का महत्व बढ़ गया है क्योंकि पनबिजली के बिना चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा संभव नहीं है। “मैंने सभी विवरणों पर गौर किया और मेरा मानना है कि कुल मिलाकर, परियोजना उसी तरह आगे बढ़ रही है जैसी उसे होनी चाहिए। पनबिजली परियोजनाओं का महत्व बढ़ गया है, क्योंकि हमें ऊर्जा परिवर्तन करने, उत्सर्जन कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने की ज़रूरत है। हालांकि, हमारे पास नवीकरणीय ऊर्जा के साथ सौर और पवन ऊर्जा भी हैं, फिर भी पनबिजली के बिना चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा संभव नहीं है। हमारी पनबिजली क्षमता बढ़ रही है।” श्री सिंह ने मीडिया को बताया कि भारत की पनबिजली क्षमता बढ़ रही है।उन्होंने कहा कि सुबनसिरी के अलावा, जो एक बड़ी परियोजना है, अरुणाचल प्रदेश सरकार ने 13 परियोजनाओं के लिए केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनकी पनबिजली क्षमता 13,000 मेगावाट होगी। “इन परियोजनाओं से राज्य में लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपये का निवेश आएगा, जिससे राज्य में प्रति व्यक्ति आय चार गुना हो जाएगी और देश को स्वच्छ ऊर्जा मिलेगी।” श्री सिंह ने बताया कि इसी प्रकार, जम्मू और कश्मीर में पांच पनबिजली परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं; इस तरह जम्मू-कश्मीर में भी हमारी पनबिजली क्षमता आगे बढ़ रही है और बहुत सारा निवेश आ रहा है। केन्द्रीय मंत्री ने देश की उपलब्ध पनबिजली क्षमता का बेहतर दोहन करने के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि आज हमारी पनबिजली क्षमता 47,000 मेगावाट है, जो हमारी उपलब्ध पनबिजली क्षमता का 35 प्रतिशत है, जबकि विकसित देशों ने अपनी उपलब्ध पनबिजली क्षमता का लगभग 70 प्रतिशत – 80 प्रतिशत उपयोग किया है।
श्री सिंह ने मीडिया को बताया कि भारत में बिजली की मांग कैसे बढ़ रही है और इसके लिए तेज गति से बिजली क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बिजली की हमारी मांग पिछले वर्ष की तुलना में अगस्त, सितंबर और अक्टूबर 2023 में 20 प्रतिशत बढ़ी। बिजली की मांग इसी दर से बढ़ती रहेगी, क्योंकि नीति आयोग के अनुसार, हमारी अर्थव्यवस्था अगले दो दशकों तक 7.5 प्रतिशत की दर से बढ़ती रहेगी। वर्ष 2013 में बिजली की अधिकतम मांग लगभग 1.35 लाख मेगावाट थी, जबकि आज यह लगभग 2.31 लाख मेगावाट है। वर्ष 2030 तक हमारी बिजली की मांग दोगुनी हो जाएगी, आज हमारी कुल खपत 1,600 अरब यूनिट है, जो करीब 3,000 अरब यूनिट हो जायेगी। हालांकि, अब भी, हमारी बिजली खपत विकसित देशों की तुलना में कम है। यूरोप की प्रति व्यक्ति बिजली खपत आज हमसे लगभग 3 गुना अधिक है। इसलिए हमारी चुनौती बिजली मांग में बढ़ोतरी के बराबर तेजी से बिजली क्षमता बढ़ाने की है। बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने बताया कि भारत तेजी से विकास कर रहा है और बिजली की बढ़ती मांग की चुनौती से निपटने के लिए बिजली क्षमता बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि पहले हमारे देश में बिजली की कमी थी, लेकिन सरकार ने पिछले साढ़े नौ वर्षों में 1.9 लाख मेगावाट की बिजली क्षमता बढा़ई है। अब हमारे पास पर्याप्त बिजली है और हम बांग्लादेश तथा नेपाल जैसे पड़ोसी देशों को भी बिजली निर्यात कर रहे हैं। नवीकरणीय ऊर्जा में हमारी निर्माणाधीन क्षमता लगभग 70,000 मेगावाट है, जबकि तापीय ऊर्जा में यह 27,000 मेगावाट है। हालांकि, हम निर्माणाधीन तापीय क्षमता में 53,000 मेगावाट और जोड़ने जा रहे हैं ताकि हम 2030 की बिजली मांग को पूरा करने में सक्षम हो सकें। उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर जो भी राज्य हमसे बिजली मांगता है, हम उन्हें बिजली मुहैया करा रहे हैं और आगे भी मुहैया कराते रहेंगे। श्री सिंह ने कहा कि भारत ऊर्जा परिवर्तन में विश्व में अग्रणी देश बन गया है और भारत जिम्मेदार विकास का मार्ग अपना रहा है। उन्होंने बताया कि पेरिस में सीओपी 21 में, हमने 2030 तक अपनी क्षमता का 40 प्रतिशत गैर-जीवाश्म-ईंधन स्रोतों से बनाने की प्रतिबद्धता जताई थी। हमने यह लक्ष्य नौ साल पहले 2021 में हासिल कर लिया। इसलिए हम विकसित देशों की तुलना में तेजी से विकास कर रहे हैं। जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से विकसित देश विकसित हो गये हैं। इसलिए यदि हमें अपने विकास के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने की आवश्यकता होगी, तो हम इसका उपयोग करेंगे। हमारा प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन वैश्विक औसत का एक तिहाई है; जबकि विकसित देशों का प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वैश्विक औसत से तीन गुना है। वायुमंडल में 80 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड भार जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है, विकसित देशों द्वारा किए गए उत्सर्जन के कारण है, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड के कुल भार में हमारा योगदान केवल 3 प्रतिशत है और हमारी जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 17 प्रतिशत है। सुबनसिरी निचली पनबिजली परियोजना के दौरे में केन्द्रीय मंत्री श्री सिंह के साथ केंद्रीय ऊर्जा सचिव श्री पंकज अग्रवाल; एनएचपीसी के सीएमडी श्री आर.के. विश्नोई; ऊर्जा मंत्रालय में संयुक्त सचिव (हाइड्रो) श्री मोहम्मद अफ़ज़ल; एनएचपीसी के निदेशक (परियोजनाएं) श्री विश्वजीत बसु; एनएचपीसी के निदेशक (तकनीकी) श्री आर के चौधरी; और सुबनसिरी निचली प्रोजेक्ट के एचओपी श्री राजेंद्र प्रसाद में भी थे।