सीएम धामी ने रेस्क्यू टीमों को दी बधाई
उत्तरकाशी टनल हादसे में 17वें दिन मिली बड़ी सफलता
देहरादून। उत्तरकाशी की सिलक्यारासुरंग में सफलतापूर्वक पाइप डालने पर सीएम धामी ने रेस्क्यू टीमों को बधाई दी। उन्होंने फेसबुक पोस्ट करते हुए लिखा बाबा बौखनाग जी की असीम कृपा रही। करोड़ों देशवासियों की प्रार्थना एवं रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे सभी बचाव दलों के अथक परिश्रम के फलस्वरूप श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए टनल में पाइप डालने का कार्य पूरा हुआ। सुरंग के अंदर ड्रिलिंग करने वाली ऑगर मशीन के ऑपरेटर शंभू मिश्रा ने बताया कि 1 बजकर 50 मिनट पर जब पाइप आर-पार हुआ तो अंदर फंसे मजदूर खुशी से झूम उठे। उन्होंने हाथ हिलाकर खुशी जताई थी। चिन्यालीसौड़ हवाई अड्डे पर चिनूक हेलीकॉप्टर को तैनात किया गया था। टीम का कहना था कि अगर किसी भी मजदूर की तबीयत खराब लगेगी तो उसे तुरंत एयरलिफ्ट कर अस्पताल भेजा जा सकता हैं।
रैट होल माइनिंग तकनीक के जरिए सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने की कोशिश कामयाब हो गई है। मजदूर सुरंग में करीब 60 मीटर की दूरी पर फंसे हुए थे जिन्हें बाहर निकाला जा रहा है। ऑगर मशीन ने 48 मीटर तक ड्रिलिंग की थी। इसके बाद रैट माइनिंग में माहिर टीम ने जिम्मा उठाया था। हाल ही में 46.8 मीटर तक ड्रिल करने के बाद अमेरिका निर्मित बरमा मशीन के कुछ हिस्से मलबे में फंस गए। जिसके बाद अधिकारियों को रैट होल ड्रिलिंग का ही सहारा दिखा। अंत में रैट होल माइनिंग तकनीक अपनाने का फैसला लिया गया, जिसके बाद कुछ जांबाजों को तैयार किया गया था। अब रैट माइनर्स की कड़ी मेहनत और देश की प्रार्थना के बाद मिशन पूरा हो चुका है। सिल्क्यारा सुरंग में सभी मशीनों द्वारा खुदाई होने के बाद अब हॉरिजॉन्टल खुदाई करने का फैसला किया गया, जो कि मैनुअल विधि से पूरी की गई। दरअसल, इसके लिए सुरंग बनाने वाले कुशल कारीगरों की जरूरत होती है। इन कारीगरों को रैट माइनर्स कहा जाता है।
रैट होल माइनर्स को संकीर्ण सुरंग बनाने के लिए तैयार किया जाता है। इनका काम मेघालय जैसे इलाकों में कोयला निकालने के लिए किया जाता है। यह माइनर्स हॉरिजॉन्टल सुरंगों में सैकड़ों फीट तक आसानी से नीचे चले जाते हैं। दरअसल, आमतौर पर एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त गड्ढा खोदा जाता है। एक बार गड्ढा खोदे जाने के बाद माइनर रस्सी या बांस की सीढ़ियों के सहारे सुरंग के अंदर जाते हैं और फिर फावड़ा और टोकरियों जैसे उपकरणों के माध्यम से मैनुअली सामान को बाहर निकालते हैं। इस प्रॉसेस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल मेघालय के कोयला खदान में किया जाता है।
साल 2024 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मजदूरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस विधि पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, इसके बाद भी कई इलाकों में रैट होल माइनिंग जारी है, जो कि अवैध माना जाता है। मेघालय में सबसे ज्यादा रैट होल माइनिंग होती है, जिसके कारण न जाने कितने ही मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ जाती है। बचाव अभियान में शामिल एक अधिकारी ने स्पष्ट करते हुए बताया कि इस रेस्क्यू ऑपरेशन में चुने गए कारीगर रैट माइनर्स नहीं हैं, बल्कि दो प्राइवेट कंपनी की दो टीमें हैं। इन लोगों को दो-तीन टीमों में विभाजित किया गया और प्रत्येक टीम एक निर्धारित समय तक स्टील पाइप में जाकर खुदाई की। एक टीम में तीन व्यक्ति को रखा गया, जिसमें से एक का काम खुदाई करना, दूसरे का मलबा इकट्ठा करना और तीसरे का काम मलबे को बाहर निकालना था।
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय के लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर सिल्क्यारा सुरंग की खुदाई चल रही थी। दरअसल, केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी चारधाम ‘ऑल वेदर सड़क’ परियोजना का हिस्सा है। इस 4.5 किलोमीटर की सुरंग की खुदाई के दौरान 12 नवंबर को सुरंग का एक हिस्सा ढह गया और उस दौरान काम कर रहे 41 मजदूर अंदर ही फंस गए।उस दिन के बाद से मजदूरों की हिम्मत बनाए रखने के लिए सभी प्रकार की कोशिश की जा रही हैं। उन तक पाइप के जरिए खाना और पानी पहुंचाया जा रहा है। संचार सुविधा देने की भी कोशिश की गई, जिसके बाद मजदूरों ने अपने परिजनों से बात की और पूरी स्थिति के बारे में बताया। सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों की जिंदगी बचाने के लिए बचाव अभियान आज सफल हुआ। उत्तरकाशी टनल हादसे में 17वें दिन बड़ी सफलता मिली है।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में दीपावली के दिन 12 नवंबर की सुबह करीब साढ़े पांच बजे सिलक्यारा से डंडालगांव तक बनाई जा रही अत्याधुनिक सुरंग का हिस्सा धंस गया है और आठ राज्यों के 41 मजदूर सुरंग में ही फंस गए थे। यह हादसा मजदूरों की शिफ्ट बदलने के दौरान हुआ था। हालांकि सुरंग में भूस्खलन की घटना का पता चलते ही केंद्र व उत्तराखंड सरकार युद्धस्तर पर बचाव कार्य में लगी रही। कई देशों से अत्याधुनिक मशीनें और विशेषज्ञों को बुलाया गया। सुरंग में 17 दिन तक चले खोज बचाव अभियान में कई बाधाएं समाने आयी। इन बाधाओं से निपटने में खोज बचाव टीम युद्ध स्तर जुटी रही। हौसले के साथ डटकर खोज बचाव टीम ने इन बाधाओं से पार पाया। जिसमें जिंदगी की जीत हुई। उत्तरकाशी हादसे में करीब 392 घंटे बाद पहली कामयाबी मिली। 392 घंटे बाद पहाड़ का सीना चीरकर पहला मजदूर बाहर लाया गया।