रंगों के पर्व होली का विशेष महत्व : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
होली के 8 दिन पहले लग जाता है होलाष्टक
देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की रंगों के पर्व होली का विशेष महत्व है। इस पर्व की तैयारियां बसंत पंचमी से शुरू हो गई हैं। इस वर्ष होलिका दहन 17 और होली 18 मार्च, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी. होली से 8 दिन पहले यानी 10 मार्च से होलाष्टक लग जाएगा। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होती है। होलाष्टक के दिन से होली की तैयारी शुरू हो जाती है।
रंगों का त्योहार होली अगले महीने आने वाला है। होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन होता है। इस बार होलिका दहन 17 मार्च 2022 को है फिर उसके एक दिन बाद 18 मार्च को होली खेली जाएगी। हिंदू धर्म में होली का त्योहार विशेष महत्व रखता है। होली के एक दिन पहले होलिका दहन होती है। जिसमें लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। होली के दिन सभी मिलकर एक दूसरे को रंग, अबीर और गुलाल लगाते हैं।
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की रंगों का त्योहार होली हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन बाद मनाया जाता है। होली के एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 17 मार्च को दोपहर 01 बजकर 29 मिनट से हो रहा है. यह तिथि अगले दिन 18 मार्च को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक मान्य है. ऐसे में होलिका दहन 17 मार्च दिन गुरुवार को होगी क्योंकि होलिका दहन के लिए प्रदोष काल का मुहूर्त 17 मार्च को ही प्राप्त हो रहा है. पंचांग के अनुसार, इस वर्ष होलिका दहन का मुहूर्त 17 मार्च को रात 09 बजकर 06 मिनट से रात 10 बजकर 16 मिनट के मध्य है. होलिका दहन के लिए एक घंटा 10 मिनट का समय प्राप्त होगा. जब पूर्णिमा तिथि को प्रदोष काल में भद्रा न हो, तो उस समय होलिका दहन करना उत्तम होता है. यदि ऐसा नहीं है, तो भद्रा की समाप्ति की प्रतीक्षा की जाती है. हालांकि भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है. इस वर्ष भद्रा पूंछ रात 09:06 बजे से 10:16 बजे तक है. भद्रा वाले मुहूर्त में होलिका दहन अनिष्टकारी होता है.
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन तिथि- 17 मार्च (सोमवार)
होलिका दहन शुभ मुहूर्त- पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 17 मार्च को दोपहर 01 बजकर 29 मिनट से हो रहा है। यह तिथि अगले दिन 18 मार्च को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक मान्य है। ऐसे में होलिका दहन 17 मार्च दिन गुरुवार को होगी क्योंकि होलिका दहन के लिए प्रदोष काल का मुहूर्त 17 मार्च को ही प्राप्त हो रहा है।
होलिका दहन विधि
होलिका दहन का तैयारी कई दिनों पहले से होने लगती हैं। होलिका दहन वाले स्थान पर लकड़ियां, उपले और अन्य जलाने वाली चीजों को एकत्रित किया जाता है। इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त पर विधिवत रूप से पूजन करते हुए होलिका में आग लगाई जाती है। फिर होलिका की परिक्रमा करते हुए पूजा सामग्री को होलिका में डाला जाता है।
होली की पौराणिक कथा
होली का त्योहार मुख्य रूप से विष्णु भक्त प्रह्राद से जुड़ी है। भक्त प्रह्लाद का जन्म राक्षस परिवार में हुआ था, परन्तु वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के कष्ट दिए। हिरण्यकश्यप ने कई बार भक्त प्रह्राल को मारने की कोशिश की लेकिन हर बार नकामी ही मिली। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को भक्त प्रह्राद को मारने की जिम्मा सौपा। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहनकर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। होलिका भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई। भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति के फलस्वरूप होलिका जल गई लेकिन भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। इसके प्रथा के चलते हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है।