उत्तराखंड समाचार

भोगनाडीह में हूल दिवस पर लगाया जाता है मेला

अंग्रेजो के आधुनिक हथियारों को परंपरागत तीर धनुष के आगे झुकने पर विवश कर दिया

देहरादून, 07 जुलाई। सन 1790 ई0 से 1810 ई0 के बीच संथाल परगना को अंग्रेजों द्वारा दामिन ए कोह कहा जाता था और इसकी घोषणा 1824 को हुई। संथाल परगाना में संथाल आदिवासी परिवार में दो वीर भईयों का जन्म हुआ, जिन्हें हम सिदो-कान्हू मुर्मू के नाम से जानते हैं, जिन्होंने अंग्रेजो के आधुनिक हथियारों को अपने परंपरागत तीर धनुष के आगे झुकने पर विवश कर दिया था। सिदो-कान्हू मुर्मू का जन्म भोगनाडीह नामक गाँव में एक संथाल आदिवासी परवार में हुआ था जो कि वर्तमान में झारखण्ड के साहेबगंज जिला के बरहेट प्रखंड में है। सिदो मुर्मू का जन्म 1815 ई0 में हुआ था एवं कान्हू मुर्मू का जन्म 1820 ई0 में हुआ था। संथाल विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाने वाले इनके और दो भाई भी थे जिनका नाम चाँद मुर्मू और भैरव मुर्मू था। चाँद का जन्म 1825 ई0 में एवं भैरव का जन्म 1835 ई0 में हुआ था। इनके अलावा इनकि दो बहने भी थी जिनका नाम फुलो मुर्मू एवं झानो मुर्मू था। इन 6 भाई-बहनो का पिता का नाम चुन्नी माँझी हुआ l सभी का जन्म भोगनाडी गाँव मे हुआ था जो कि वर्तमान में झारखण्ड राज्य के संथाल परगाना परमण्ल के साहेबगंज जिला के बरहेट प्रखण्ड के भोगनाडीह में है। सिदो-कान्हू ने 1855-56 मे ब्रिटिश सत्ता, साहुकारो, व्यपारियों व जमींदारो के अत्याचारों के खिलाफ एक विद्रोह कि शुरूवात की l जिसे हम संथाल विद्रोह या हूल आंदोलन के नाम से जानते हैं। संथाल विद्रोह का नारा था करो या मरो अंग्रेजो हमारी माटी छोड़ो । सिदो ने अपनी दैवीय शक्ति का हवाला देते हुए सभी मांझीयों को साल की टहनी भेजकर संथाल हुल में शामिल होने के लिए आमंत्रन भेजा। 30 जून 1855 को भेगनाडीह में संथाल आदिवासी समाज की एक सभा हुई जिसमें 400 गांवों के 50000 संथाल एकत्र हुए। जिसमें सिदो को राजा, कान्हू को मंत्री, चाँद को मंत्री एवं भैरव को सेनापति चुना गया। संथाल विद्रोह भोगनाडीह से शुरू हुआ जिसमें संथाल तीर-धनुष से लेस अपने दुश्मनो पर टुट पड़े। अंग्रेजो का नेतृत्व कर रहे थे जनरल लॉयर्ड l अंग्रेज़ी सेना आधुनिक हथियार और गोला बारूद से परिपूर्ण थी l इस इस संघर्ष में अंग्रेजों के कई दरोगा और प्रमुख लोगों को मार गिराया, जिससे अंग्रेजो में भय का व्याप्त हो गया l संथालो के भय से अंग्रेजो ने बचने के लिए पाकुड़ में मार्टिलो टावर का निर्माण कराया गया था जो आज भी झारखण्ड के पाकुड़ जिले में स्थित है। अंततः इस मुठभेड़ में संथालो कि हार हुई, आज ही के दिन अमर बलिदानी, महान योद्धा सिदो-कान्हू को अंग्रेजों ने फांसी दे दी गई। इस भयंकर मुठभेड़ में संथालो हार हुई क्योंकि हमारे लोग तीर धनुष से लड़ रहे थे जबकि अंग्रेजो के पास आधुनिक हथियार थे । अमर शहीद सिदो को अगस्त 1855 में गिरफ्तार कर पंचकठिया नामक जगह पर बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी l वह पेड़ आज भी पंचकठिया में स्थित है जिसे हम आज शहीदी स्थल के नाम से जानते हैं l जबकि अमर योद्धा कान्हू को भोगनाडीह में क्रूर अंग्रेजी सेना द्वारा फांसी दे दी गई l आज भी वह समस्त जनजातीय समाज के दिलो में आज भी वह जिन्दा हैं l एवं याद किए जाते है। इसलिए आज भी 30 जून को भोगनाडीह में हूल दिवस पर उनकी याद में मेला लगाया जाता है, दोनों वीर शहीदों, अमर योद्धा सिदो-कान्हू को याद किया जाता है।

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