विकास के नाम पर विनाश? नई परियोजनाओं पर विपक्षी दलों ने उठाया सवाल
वक्ताओं ने कहा कि बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि सरकार के पास ऐसी परियोजनाएं बनाने के लिए 9500 करोड़ का बजट है
देहरादून 26 मार्च। आज चिपको आंदोलन की बरसी पर देहरादून के अग्रवाल धर्मशाला में जन सम्मेलन किया गया, जिसमें पर्यावरण विशेषज्ञों, जन संघटनों, एवं विपक्षी दलों के प्रतिनिधि के साथ सौ से ज्यादा आम लोग शामिल हुए। राज्य में कुछ घोषित परियोजनाओं पर गंभीर सवाल उठा कर सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि जोशीमठ की त्रासदी के बाद भी विकास के नाम पर ऐसी नीतियों पर अमल किया जा रही है जो पर्वतीय क्षेत्रों के लिए लायक नहीं और जिनसे स्थानीय लोगों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने ख़ास तौर पर देहरादून के दोनों नदियों पर घोषित हुए एलिवेटेड सडकों पर सवाल उठाया। वक्ताओं ने कहा कि इन परियोजनाओं द्वारा शहर में जलभराव, प्रदूषण, और अन्य समस्याओं को बड़ा सकती हैं। देहरादून साइज़्मिक ज़ोन 4 में है जहाँ पर भूकंप की सम्भावना हमेशा होती है, और ऐसी स्थिति में ये परियोजनाएं हज़ारों लोगों के लिए घातक बन सकती है। इसके साथ साथ ऐसे सडकों के लिए क्या सरकार को दसियों हज़ार लोगों को बेदखल भी करना पड़ेगा? यह सम्भावना भी दिख रही है। वक्ताओं ने कहा कि बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि सरकार के पास ऐसी परियोजनाएं बनाने के लिए 9500 करोड़ का बजट है लेकिन शहर के अंदर लोगों के लिए आठ साल में उन्होंने 400 घर भी नहीं बना पायी। वक्ताओं ने यह भी कहा कि दुनिया भर और भारत के अन्य शहरों के अनुभवों से यह बात बहुत स्पष्ट हो गयी है कि यातायात की समस्याएं का हल सिर्फ सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाने से ही हो सकता है। जिस देश में 84% महिलाएं सार्वजनिक परिवहन द्वारा यात्रा करती हैं और जिस शहर में लाखों लोग या तो किराये पर या मलिन बस्ती में रह रहे हैं, सरकार इतनी बड़ी रकम ऐसी परियोजनाओं पर खर्च करे, यह कैसे जनहित नीति हो सकती है? ऐसी परियोजनाओं से विकास होगा कि विनाश? वक्ताओं ने मांग की कि किसी भी परियोजना को फाइनल करने से पहले सरकार जनता के सामने श्वेत पत्र द्वारा स्पष्ट करे कि इन परियोजनाओं की ज़रूरत क्या है, किन्होंने ऐसे परियोजनाओं के लिए मानग की, और इन परियोजनाओं से लोगों पर और पर्यावरण पर होने वाले नुक्सान के लिए सरकार के पास योजना क्या है। उसके साथ साथ उन्होंने मांग किया कि सरकार तुरंत ऐसे कानून लाये कि विकास के नाम पर या अतिक्रमण हटाने के नाम पर किसी को बेघर नहीं किया जायेगा। न्यायालयों में और खास तौर पर उर्मिला थापा बनाम उत्तराखंड राज्य वाला याचिका में भी सरकार अपने वादों के अनुसार राय ले कि किसी को बेघर नहीं किया जा सकता है। बस्तियों की नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए भी 2016 का कानून के अनुसार नीति बनाये। शहर में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाया जाये और ख़ास तौर पर महिलाओं के लिए सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था किया जाये। पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जनहित और उचित विकास हो, इसके लिए कदम उठाया जाये।
इस अवसर पर वरिष्ठ पर्यावरणविद रवि चोपड़ा, उत्तराखंड महिला मंच के निर्मला बिष्ट, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के नरेश नौडियाल और कुलदीप मधवाल, हिन्द स्वराज मंच के बीजू नेगी, चेतना आंदोलन के सुनीता देवी, पीपल्स साइंस मूवमेंट के कमलेश कंथवाल और विजय भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट, सर्वोदय मंडल के हरबीर सिंह खुश्वाहा एवं विजय शुक्ला, और सामाजिक कार्यकर्ते राकेश पंत और गजेंद्र बहुगुणा ने सम्मेलन को सम्बोधित किया। सम्मलेन में अशोक कुमार, प्रभु पंडित, राजेंद्र शाह, रामु सोनी, पप्पू, रहमत, संजय सहनी, नरेश कुमार, सिकंदर कुमार, घनश्याम सिंह आदि मौजूद रहे। चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल ने संचालन किया।