हिंदू धर्म में सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
20 फरवरी को मनाई जायेगी सोमवती अमावस्या
देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की इस बार 20 फरवरी को सोमवती अमावस्या है। हिंदू धर्म में सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व होता है। सोमवार के दिन इस बार फाल्गुन माह की अमावस्या पड़ रही है जिस कारण इसका नाम सोमवती अमावस्या कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस दिन से फाल्गुन माह का कृष्ण पक्ष खत्म हो जाता है। अमावस्या तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान, ध्यान, दान और पितरों का तर्पण करने की परंपरा होती है। ऐसी मान्यता है कि सोमवती अमावस्या के दिन यदि कोई व्यक्ति कुछ धर्म-कर्म, दान और पितरों का तर्पण करता है तो उसके जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या तिथि पर मां गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत पुण्यकारी माना गया है। अमावस्या तिथि पर स्नान का उत्तम समय सूर्योदय से पूर्व माना जाता है। मान्यता है कि सोमवती अमावस्या पर विधिवत स्न्नान करने से भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहती है। इस दिन विधिवत स्नान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
भगवान सूर्य इस पृथ्वी पर एकमात्र प्रत्यक्ष देवता हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रतिदिन और विशेषकर व्रत-त्योहार के मौके पर भगवान सूर्य को अर्घ्य देना बहुत ही पवित्र माना जाता है। ऐसे में अमावस्या तिथि पर गंगा स्नान के बाद सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ्य अवश्य प्रदान करना चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पीपल के पेड़ में पितरों और सभी देवी-देवताओं का वास होता है। अमावस्या तिथि पर पीपल के पेड़ की पूजा करने, जल देने और दीपक जलाने पर सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। पीपल के पेड़ की पूजा करने के बाद उसकी परिक्रमा करना जरूरी होता है।
अमावस्या तिथि पर अन्न, दूध, फल, चावल, तिल और आवंले का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। स्नान- दान आदि के अलावा इस दिन पितरों का तर्पण करने से परिवार पर पितरों की कृपा बनी रहती है।
सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। ये वर्ष में लगभग एक अथवा दो ही बार पड़ती है। इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व होता है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत का विधान है। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गयी है। अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष। इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर १०८ बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है। और कुछ अन्य परम्पराओं में भँवरी देने का भी विधान होता है। धान, पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व समझा जाता है। कहा जाता है कि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त होगा। ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से पितरों कि आत्माओं को शांति मिलती है।