नारी को माना जाता है ईश्वर का रूप : राज्यपाल
भारतीय संस्कृति में स्त्री के बिना यज्ञ पूर्ण नहीं होता है।
देहरादून 25 नवम्बर। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने कहा कि जब किसी देश की संस्कृति और सभ्यता का मूल्यांकन करना हो तो उस देश, समाज एवं उस संस्कृति में महिलाओं को क्या स्थान दिया गया है, इस बात को समझना बेहद जरूरी है। भारत की सभ्यता, संस्कृति और इतिहास को मापना हो तो पता चलता है कि दुनिया में एकमात्र भारत की ही संस्कृति है, जो महिलाओं को सर्वोच्च स्थान देती है। उसे शक्ति के रूप में, माता के रूप में, विद्या, बुद्धि, विवेक के रूप में सम्मान दिया जाता है। नारी को ईश्वर का रूप माना जाता है। भारतीय संस्कृति में स्त्री ने युद्ध, कला, कौशल सहित सभी क्षेत्रों में समाज को नेतृत्व दिया है। राज्यपाल शुक्रवार को दून विश्वविद्यालय में ‘भारतीय महिला-एक सत्य आधारित दृष्टिकोण’विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग करते हुए बोल रहे थे। इस संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए राज्यपाल ने कहा कि भारतीय महिला के इस सत्य को समझना बेहद जरूरी है। हजारों साल की गुलामी ने हमारे वास्तविक सत्य को कहीं खो दिया है। भारतीय संस्कृति में स्त्री के बिना यज्ञ पूर्ण नहीं होता है। पुरुष और महिला को समाज में समान अधिकार दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी भारतीय महिला के सच्चे स्वरूप को प्रकट करने वाली होगी और नारी के सच्चे स्वरूप से समाज को परिचित कराएगी।राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड की महिलाएं अपने आप में बिल्कुल अलग हैं, वे हमारे परिवार की सबसे सशक्त सदस्य होने के साथ-साथ आर्थिकी की रीढ़ भी हैं। वह नेतृत्वकर्ता के रूप में भी अपना योगदान दे रही हैं। उन्होंने कहा कि जनपद भ्रमण के दौरान स्वयं सहायता समूह के रूप में महिलाओं के योगदान को बेहद करीब से देखा है। वे हमारी आर्थिक व्यवस्था का भी नेतृत्व कर रही हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालयों में गोल्ड मेडलिस्ट के रूप में हो या पंचायती राज व्यवस्था सहित अन्य क्षेत्रों में नेतृत्व करने में भी बेटियों की अग्रणी भागीदारी है। उन्होंने कहा कि अमृतकाल के इस सोपान में विकसित देश बनने में हमारी नारी शक्ति का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। राज्यपाल ने कहा कि हमारी बेटियों में असीमित क्षमताएं है। उनके साहस, हौसले, धैर्य असीमित हैं। इन क्षमताओं को हमारी सोच और हमारे विचार बाधक बन सकते हैं, इसलिए हमें उनकी नई उड़ान, नई ऊंचाईयां दिलाने के लिए अपनी सोच और अपने विचारों में परिवर्तन लाना होगा। उन्होंने विश्वविद्यालय को इस तरह की संगोष्ठी के सफल आयोजन की शुभकामनाएं दी। इस अवसर पर राज्यपाल ने महिला विश्वविद्यालय एस.एन.डी.टी की कुलपति उज्ज्वला चक्रदेव द्वारा लिखित पुस्तक ‘भारतीय महिला-एक सत्य आधारित दृष्टिकोण’ का भी विमोचन किया। इस अवसर पर उपस्थित वक्ताओं ने अपने-अपने विचारों से नारीत्व की क्षमताओं और संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया। कार्यक्रम के दौरान दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.सुरेखा डंगवाल, यू-कॉस्ट के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत, राष्ट्रीय सेविका समिति की प्रमुख शांता अक्का, संवर्द्धिनी न्यास के आयोजक सचिव सुश्री माधुरी मराठे, महिला विश्वविद्यालय एस.एन.डी.टी की कुलपति उज्ज्वला चक्रदेव, नैक की उप सलाहकार लीना गाहने सहित अन्य वक्ताओं ने महिलाओं से जुड़े विभिन्न विषयों पर अपने वक्तव्य रखे। इस दौरान विभिन्न कॉलेजों के प्रधानाचार्य, प्रमुख और डीन, संका सदस्य, प्रशासनिक सदस्य और कई कॉलेजों के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।