भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाते ही शुरू होगा चातुर्मास : डाक्टर आचार्य सुशांत राज
10 जुलाई से आरंभ हो रहा चातुर्मास : डाक्टर आचार्य सुशांत राज
देहरादून। डाक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुए बताया कि चातुर्मास का प्रारंभ आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी तिथि से होता है। इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल एकादशी तिथि को भगवान श्रीहरि क्षीरसागर में योग निद्रा के लिए चले जाते है और वे वहां चार माह विश्राम करते हैं। इस दौरान पृथ्वी लोक की जिम्मेदारी भगवन शिव की होती है। चार माह के बाद भगवान विष्णु पुनः कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी तिथि को पृथ्वी लोक वापस आयेंगे। इस चार माह की अवधि को चातुर्मास कहते हैं।
आषाढ़ माह की शुक्ल एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहते हैं। योग निद्रा के बाद भगवान श्रीहरि देवउठनी एकादशी को पृथ्वी लोक आते हैं। मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु पृथ्वी लोक पर नहीं रहते हैं। इसलिए चातुर्मास के दौरान कुछ ऐसे कार्य होते हैं जिसे भूलकर भी नहीं करना चाहिए, नहीं तो जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
डाक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुए बताया कि देवशयनी एकादशी 10 जुलाई को है और इस दिन से आने वाले चार महीनों तक सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु पाताल लोक में योग निद्रा में चले जाएंगे। इस चार माह की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान मांगलिक कार्य जैसे- विवाह संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध रहेंगे। चातुर्मास आरंभ होने के कारण किसी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। वहीं कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी पर जब भगवान विष्णु योग निद्रा से जागकर पुनः इस लोक में आएंगे और तुलसी जी के साथ उनका विवाह होगा, उसके बाद से सारे मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ होंगे और चातुर्मास खत्म होगा। मान्यता है कि इस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथो में होता है।
देहरादून। डाक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुए बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार, देवशयनी एकादशी से चातुर्मास आरंभ होता है और इसका समापन देवउठनी या देवोत्थान एकादशी पर होता है। इस साल चातुर्मास का आरंभ 10 जुलाई से हो रहा है। जबकि इसका समापन 04 नवंबर को होगा। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
डाक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुए बताया कि चातुर्मास में कोई भी मांगलिक कार्य, जैसे- वैवाहिक कार्य, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, मुंडन, तिलकोत्सव आदि कार्य नहीं किए जाते हैं। मान्यता है कि चातुर्मास में इन कार्यों को करने से अशुभ फल प्राप्त होता है।
मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में थाली छोड़कर पत्तल में भोजन करना शुभकारी होता है। इसके अलावा चारपाई त्याग कर जमीन पर सोना चाहिए। इससे सूर्यदेव की कृपा बरसती है।
मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में भगवान विष्णु की पूजा अत्यंत लाभकारी है। इससे मां लक्ष्मी का आगमन होता है। इस माह लोगों को किसी से लड़ाई-झगड़ा करने से बचना चाहिए और झूठ नहीं बोलना चाहिए।
चातुर्मास की अवधि के दौरान, तुलसी पूजा करनी चाहिए। शाम को तुलसी पौधे पर घी दीपक जलाएं। इसके अलावा चातुर्मास के दौरान गुड़, तेल, शहद, मूली, परवल, बैंगल, साग-पात आदि नहीं ग्रहण करना चाहिए।
डाक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुए बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार, चौमासा यानी चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से शुरू हो जाती है। इसके साथ ही हिंदू कैलेंडर के मुताबिक श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक इन चार माह में कोई भी शुभ काम नहीं होते हैं। वेद-पुराणों के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के लिए निद्रा में चले जाते हैं। ऐसे में उनकी जगह भगवान शिव सृष्टि का हर एक काम संभालते हैं। इसी कारण इन चार माह में किसी भी तरह के मांगलिक काम को करने की मनाही होती है।