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हम अपनी बुद्धि और विदेशी मुद्रा को देश से बाहर न ले जाएं : उपराष्ट्रपति

राजकोषीय सामर्थ्य के बजाय आवश्यकता के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, श्री धनखड़ ने इन संसाधनों के अधिकतम उपयोग का आह्वान किया।

नई दिल्ली। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज शिक्षा को राष्ट्र की सेवा के रूप में लेने की आवश्यकता पर जोर दिया और सभी से आग्रह किया कि ‘आप राष्ट्र से जो भी लें उसे वापस लौटा दें।’ उन्होंने कहा, ‘वाणिज्य और व्यवसाय बनाने के उद्देश्य से शिक्षा का उपयोग करना सामाजिक कारणों और हमारी सभ्यता की उत्कृष्टता, सद्गुणों के विपरीत है।’ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को किसी भी समाज को बेहतर बनाने वाला सबसे प्रभावशाली परिवर्तनकारी तंत्र बताते हुए, उपराष्ट्रपति ने ‘अपनी बुद्धि और विदेशी मुद्रा को देश से बाहर बर्बाद करने’ के प्रति आगाह किया। आज गुवाहाटी में रॉयल असम ग्लोबल यूनिवर्सिटी के तीसरे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने दीक्षांत समारोह को ‘आपके शिक्षकों द्वारा दिए गए प्रशिक्षण का पुरस्कार, परिवार की आशाओं और आकांक्षाओं का फल’ बताया। उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि वे ऐसी गतिविधियों में शामिल होने से बचें जो उनके शिक्षकों और माता-पिता को बदनाम कर सकती हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रशंसा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि इस नीति के कार्यान्वयन द्वारा छात्रों को एक साथ कई पाठ्यक्रम करने की अनुमति देकर ज्ञान और कौशल का एकीकरण हुआ है। 2019 में एक असफल प्रयास के बाद, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की हाल ही में सफल लैंडिंग की सराहना करते हुए, उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि ‘विफलता सफलता के लिए एक आवश्यक कदम है।‘ एक उदाहरण देते हुए, उन्होंने विफलता की तुलना पानी के गिलास से की जिसे आधा भरा या आधा खाली देखा जा सकता है। उपराष्ट्रपति ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के फलने-फूलने में पूर्व छात्रों के योगदान और संरक्षण द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने छात्रों से अपने संस्थान के साथ स्थायी संबंध स्थापित करने और शिक्षा की बेहतरी के लिए इसके संसाधनों में लगातार योगदान देने का आग्रह किया। राजकोषीय सामर्थ्य के बजाय आवश्यकता के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, श्री धनखड़ ने इन संसाधनों के अधिकतम उपयोग का आह्वान किया।

उपाधियाँ और पदक प्रदान करते समय, उपराष्ट्रपति ने प्रसन्नता व्यक्त की कि ‘उनमें से दो-तिहाई से अधिक लड़कियाँ थीं।’ उन्होंने इसे राष्ट्र की ‘बदलती प्रोफ़ाइल’ का प्रतिबिंब बताया। श्री धनखड़ ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि संसद में महिला आरक्षण विधेयक का पारित होना ग्रह पर सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक कदम था।

अपने एक दिवसीय दौरे के दौरान, उपराष्ट्रपति ने पहले गुवाहाटी में कॉटन विश्वविद्यालय का दौरा किया और छात्रों और संकाय सदस्यों के साथ बातचीत की। बाद में संध्या समय वह गुवाहाटी में बृहत्तर गुवाहाटी मारवाड़ी समाज के सदस्यों द्वारा आयोजित अभिनंदन कार्यक्रम में शामिल हुए।

असम के राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया, असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा, असम सरकार के शिक्षा मंत्री डॉ. रनोज पेगु, असम सरकार की बिजली, खेल और युवा कल्याण, सहकारिता और स्वदेशी जनजातीय आस्था और संस्कृति मंत्री सुश्री नानादिता गोरलोसा, असम के मुख्य सचिव श्री पबन कुमार बोरठाकुर, रॉयल असम ग्लोबल यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. अशोक कुमार पंसारी, संकाय सदस्य और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।

 

 

 

 

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