रेलवे ने दिलाई नागपुर को पहचान
। वर्तमान के चारों डायमंड क्रासिंग का निर्माण 1924 में हुआ था। वर्ष 1989 में इसका विद्युतीकरण सम्पन्न हुआ।
देहरादून। नागपुर को आम जनमानस संतरा नगरी के नाम से जानता है और बचे कुचे लोग हल्दीराम के नमकीन के नाम से ..लेकिन रेलवे ने नागपुर को पहचान दिलाई है डबल डायमंड क्रॉसिंग ने जिसको देखने विदेशी अभियंता भी खिंचे चले आते हैं। अगर आप रेलवे में हैं और रेलवे के इस धाम के दर्शन नहीं किए तो आपकी रेलसेवा अधूरी समझी जाएगी। यह देश के लिए सेंटर प्वाइंट है। आइए संक्षिप्त परिचय में जाने की क्या है यह विश्व प्रसिद्ध डबल डायमंड क्रॉसिंग.. डायमंड क्रासिंग :- जब एक रेल लाइन दूसरे रेल लाइन को क्रास करते हुए निकल जाती है। भले ही वह समान प्रकार गेज वाली हो अथवा किसी दूसरे प्रकार का गेज वाली हो। यदि 90 डिग्री पर क्रास करते हैं तो गणितीय रूप से उसे स्क्वायर डायमंड क्रासिंग की परिभाषा दी जाती है। वर्तमान के चारों डायमंड क्रासिंग का निर्माण 1924 में हुआ था। वर्ष 1989 में इसका विद्युतीकरण सम्पन्न हुआ। इसके क्रासिंग के ऊपर बिजली तारों को विशेष रूप से बनाया गया है। जिससे की ये आपस में टकराकर शार्ट न करें। उत्तर की ओर दिल्ली से आने वाली और साउथ में चेन्नई जाने वाली डबल लाईन को नागपुर स्टेशन पर प्रवेश करने से एक किलोमीटर पूर्व दो दिशाओं में बांटा गया है। जिसमें से डबल लाईन वाला एक भाग नागपुर स्टेशन चला जाता है जबकि दूसरा डबल लाईन वाला दूसरा भाग नागपुर गुड्स यार्ड में चला जाता है। इस पर केवल मालगाड़ी का परिचालन होता है। यही मालगाड़ी वाली डबल लाईन, मुम्बई से हावड़ा जाने वाली ट्रंक रुट वाली डबल लाईन को क्रास करती है। जिसके कारण यहाँ एक साथ 4 डायमंड क्रासिंग बनते हैं। हावड़ा वाली मेन लाईन हावड़ा के तरफ चली जाती है। जबकि मालगाड़ी वाली दोनों लाईन नागपुर गुड्स यार्ड होते हुए अजनी “ए केबिन”में जाकर में मेन लाईन में जुड़ जाती है।जो अब आटोमैटिक सेक्शन बन चुका है।आगे की कहानी के लिए हमें चमन पिरास के पूरे दो डब्बे खाने होंगे क्योंकि हम इंजन के नियर हैं न कि इंजीनियर पटरी काट कर क्रॉसिंग बनाना समझ आता है लेकिन ऊपर हाय वोल्टेज बिजली के तारों को कैसे क्रॉस में समायोजित किया यह बात रहस्य से कम नहीं।