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15 जनवरी को पड़ रहा मकर संक्रांति का पर्व : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज

मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है,

देहरादून 09 जनवरी। मकर संक्रांति हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार माना जाता है। भारत के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति को विभिन्न नामों से जाना जाता है। इस त्योहार को गुजरात में उत्तरायण, पूर्वी उत्तर प्रदेश में खिचड़ी और दक्षिण भारत में इस दिन को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के राशि परिवर्तन के मौके पर मनाया जाता है। इस दिन सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश कर जाते हैं। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है I वैसे तो मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन साल 2023 में मकर संक्रांति की सही तिथि को लेकर थोड़ा संशय है। सूर्य देव के रात्रि के समय में मकर राशि में गोचर करने के कारण संशय की स्थिति पैदा हो गई है। ऐसे में हम डॉक्टर आचार्य सुशांत राज से जानते हैं कि इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाएगा या फिर 15 जनवरी को? डॉक्टर आचार्य सुशांत राज के अनुसार, सूर्य देव जब मकर राशि में गोचर करते हैं, उस समय मकर संक्रांति होती है। इस साल 14 जनवरी को रात 08 बजकर 14 मिनट पर सूर्य देव मकर राशि में गोचर कर रहे हैं। ऐसे में मकर संक्रांति का क्षण 14 जनवरी को पड़ रहा है। सूर्य के मकर में प्रवेश के समय के कारण मकर संक्रांति की तारीख को लेकर संशय पैदा हुआ है।
मकर संक्रांति 2023 शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, ग्रहों के राजा सूर्य 14 जनवरी 2023 की रात 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे। उदया तिथि 15 जनवरी को प्राप्त हो रही है। ऐसे में मकर संक्रांति नए साल में 15 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी।
मकर संक्रांति 2023 पूजा विधि
मकर संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। फिर इसके बाद साफ वस्त्र पहनकर तांबे के लोटे में पानी भर लें और उसमें काला तिल, गुड़ का छोटा सा टुकड़ा और गंगाजल लेकर सूर्यदेव के मंत्रों का जाप करते हुए अर्घ्य दें। इस दिन सूर्यदेव को अर्घ्य देने के साथ ही शनिदेव को भी जल अर्पित करें। इसके बाद गरीबों को तिल और खिचड़ी का दान करें।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव को अर्घ्य देना बेहद शुभ होता है। इस दिन तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें काला तिल, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत आदि डालें और फिर ‘ओम सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करते हुए सूर्य को अर्घ्य दें।
मकर संक्रांति देश के कई राज्यों में अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं और पर्व के मनाए जाने का तौर तरीका भी काफी अलग होता है। देवभूमि उत्तराखंड में इस मुख्य पर्व मकर सक्रांति को घुघुतिया त्योहार के नाम से जाना जाता है। आज के दिन उत्तराखंड के सभी लोग अपने दिन की शुरुआत सुबह नहाने से करते हैं। घर की महिलाओं द्वारा रसवाडें को मोल मिट्टी की सहायता से लिपाई पुताई की जाती है। उसके बाद सभी लोगों द्वारा अपने घर के देवता स्वरूप देवी देवताओं की पूजा की जाती है। और दिन के भोजन में घुघुतिया बनाए जाते हैं। यह घुघुतिया आटे की सहायता से बनाए जाते हैं। जिसमें विभिन्न प्रकार की आकृतियों के माध्यम से घुघुतिया तैयार किए जाते हैं। इन सभी घुघुतिया को परिवार के छोटे बच्चों द्वारा कागा (कौवा) अपने हाथ के माध्यम से खिलाया जाता है। इसी तरह से यह पर्व अपने ऐतिहासिक पहलू को संजोता है।
इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। हमारे पवित्र वेद, भागवत गीता जी तथा पूर्ण परमात्मा का संविधान यह कहता है कि यदि हम पूर्ण संत से नाम दीक्षा लेकर एक पूर्ण परमात्मा की भक्ति करें तो वह इस धरती को स्वर्ग बना देगा और आप जी की और इच्छा को पूरा करें।
मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व
मकर संक्रान्ति के अवसर पर भारत के विभिन्न भागों में, और विशेषकर गुजरात में, पतंग उड़ाने की प्रथा है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

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