आजकल आय का अच्छा जरिया बन रहा तुम्बा
रेगिस्तान में तुम्बा आसानी से पनपने की वजह से किसानों के लिए एक अतिरिक्त आय का साधन बन सकता है
देहरादून। बहुत कम बारिश होने की वजह से किसनों के लिए रेगिस्तान में जहां एक ओर फसल उत्पादन करना बहुत कठिन कार्य है, वही दूसरी तरफ खरीफ फसल में खरपतवार ने नाम से जाने वाला तुम्बा आजकल आय का अच्छा जरिया बन रहा है। सूखे क्षेत्रों में पशुपालन ही अधिकतर किसानों का जीवनयापन करने का एकमात्र साधन है। हरे एवं सूखे चारे के अभाव की वजह से पशुपालकों को अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ता है। रेगिस्तान में तुम्बा आसानी से पनपने की वजह से किसानों के लिए एक अतिरिक्त आय का साधन बन सकता है। तुम्बा का छिल्का पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने के साथ साथ देशी एवं आयुर्वेदिक औषधीयों में काम आता है। इसके अलवा गाय, भेड़, बकरी व ऊंट आदि में होने वाली बीमारियों के उपचार में काम आता है। इसकी पत्तियां बकरियों के पौष्टिक चारे के रूप में काम आती है तथा उनका दूध बढ़ाती है। तुम्बा पशुओं में थनों पर सूजन को कम करने वाला, कृमि को निकालने में मददगार, पशु की पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला और रक्त को शुद्ध करने का कार्य करता है। पशु आहार के साथ एक तुम्बा पशु को रोज खिलाने से पशु स्वस्थ एवं बीमारियों से दूर रहता है। रेगिस्तान में किसान तुम्बा को खरपतवार के तौर पर देखा करते थे। लेकिन आजकल इसकी मांग औषधीयों गुणों से भरपूर होने की वजह से बाजार में अधिक होने के कारण अच्छे दामों पर बिक्री हो जाती है। तुम्बा का अचार, केंडी, मुरब्बा और चूर्ण बना कर घरेलू उपयोग के साथ साथ बाजार में बेचकर मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। शुष्क और अतिशुष्क क्षेत्र में तुम्बा जैसी फसल को अपनाया जाना आवश्यक हो गया है जो बहुत ही कम वर्षा व व्यय में संभव है। यह खरीफ के मौसम की फसल होने साथ ही भू-संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पेट साफ करने, मानसिक तनाव, पीलिया, मूत्र रोगों में लाभदायक है। तुम्बा को इंद्रायण, सिट्रलस कॉलोसिंथस एवं बिटर ऐपल इत्यादि नामों से जाना जाता है। इसके फल के गूदे को सुखाकर औषधि के लिए काम में लाते हैं।
ऐसे तैयार होता है तुम्बे का आचार व केंडी :- सर्वप्रथम तुम्बे का छिलका उतारकर चुने के पानी में सात से आठ दिनों तक भिगोकर रखा जाता है ताकि यह मीठा हो जाए। एक किलो चूना प्रति चार किलो तुम्बा के लिए पर्याप्त होता है। इस चूने को उपयोग में लाने से पूर्व दस लीटर पानी डालकर रात भर के लिए रखने के पश्चात चूने के पानी को निथारकर कपड़े से छानकर इसको अलग करके इसमे तुम्बे को साथ से आठ दिनों तक के लिए डाल दिया जाता है। इसके बाद में इसको साफ पानी से धोया जाता है। अब इसको धूप में सुखाया जाता है, ताकि इसकी नमी पूरी तरह से खत्म हो सके। इसके बाद में सूखे हुए तुम्बे में हल्दी, राई, मेथी, सौंफ, जीरा, हिंग, सरसों का तेल डाल दिया जाता है। सुखाने के बाद की प्रक्रिया ठीक उसी तरह रहेगी जैसे की साधारण आचार बनाने की होती है। यदि इस सूखे हुए तुम्बे को चीनी की चासनी में उबालकर रख दिया जाय तो यह केंडी बन जाती है। पौष्टिक एवं स्वादिष्ट तुम्बे का अचार बाजार में 400 रूपये किलो तक बिकता है जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है।