देहरादून। 15 अगस्त 1947 से पूर्व भारत में अंग्रेजों का शासन था। उनकी शह पर अनेक राजे-रजवाड़े भी अपने क्षेत्र की जनता का दमन करते रहते थे। फिर भी स्वाधीनता की ललक सब ओर विद्यमान थी, जो समय-समय पर प्रकट भी होती रहती थी। राजस्थान की एक रियासत डूंगरपुर के महारावल चाहते थे कि उनके राज्य में शिक्षा का प्रसार न हो। क्योंकि शिक्षित होकर व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाता था, लेकिन अनेक शिक्षक अपनी जान पर खेलकर विद्यालय चलाते थे। ऐसे ही एक अध्यापक थे सेंगाभाई, जो रास्तापाल गांव में पाठशाला चला रहे थे। इस सारे क्षेत्र में महाराणा प्रताप के वीर अनुयायी भील बसते थे। विद्यालय के लिए नानाभाई खांट ने अपना भवन दिया था। इससे महारावल नाराज रहते थे। उन्होंने कई बार अपने सैनिक भेजकर नानाभाई और सेंगाभाई को विद्यालय बन्द करने के लिए कहा, पर स्वतंत्रता और शिक्षा के प्रेमी ये दोनों महापुरुष अपने विचारों पर दृढ़ रहे। यह घटना 19 जून, 1947 की है। डूंगरपुर का एक पुलिस अधिकारी कुछ जवानों के साथ रास्तापाल आ पहुंचा। उसने अंतिम बार नानाभाई और सेंगाभाई को चेतावनी दी, पर जब वे नहीं माने, तो उसने बेंत और बंदूक की बट से उनकी पिटाई शुरू कर दी। दोनों मार खाते रहे, पर विद्यालय बंद करने पर राजी नहीं हुए। नानाभाई का वृद्ध शरीर इतनी मार नहीं सह सका और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये। इतने पर भी पुलिस अधिकारी का क्रोध शांत नहीं हुआ। उसने सेंगाभाई को अपने ट्रक के पीछे रस्सी से बांध दिया। उस समय वहां गांव के भी अनेक लोग उपस्थित थे, पर डर के मारे किसी का बोलने का साहस नहीं हो रही था। उसी समय एक 12 वर्षीय भील बालिका कालीबाई वहां आ पहुंची। वह साहसी बालिका उसी विद्यालय में पढ़ती थी। इस समय वह जंगल से अपने पशुओं के लिए घास काट कर ला रही थी। उसके हाथ में तेज धार वाला हंसिया चमक रहा था। उसने जब नानाभाई और सेंगाभाई को इस दशा में देखा, तो वह रुक गयी। उसने पुलिस अधिकारी से पूछा कि इन दोनों को किस कारण पकड़ा गया है। पुलिस अधिकारी पहले तो चुप रहा, पर जब कालीबाई ने बार-बार पूछा, तो उसने बता दिया कि महारावल के आदेश के विरुद्ध विद्यालय चलाने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। कालीबाई ने कहा कि विद्यालय चलाना अपराध नहीं है। गोविन्द गुरुजी के आह्नान पर हर गांव में विद्यालय खोले जा रहे हैं। वे कहते हैं कि शिक्षा ही हमारे विकास की कुंजी है।
पुलिस अधिकारी ने उसे इस प्रकार बोलते देख बौखला गया। उसने कहा कि विद्यालय चलाने वाले को गोली मार दी जाएगी। कालीबाई ने कहा,तो सबसे पहले मुझे गोली मारो। इस वार्तालाप से गांव वाले भी उत्साहित होकर महारावल के विरुद्ध नारे लगाने लगे। इस पर पुलिस अधिकारी ने ट्रक चलाने का आदेश दिया। रस्सी से बंधे सेंगाभाई कराहते हुए घिसटने लगे। यह देखकर कालीबाई आवेश में आ गयी। उसने हंसिये के एक ही वार से रस्सी काट दी। पुलिस अधिकारी के क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने अपनी पिस्तौल निकाली और कालीबाई पर गोली चला दी। इस पर गांव वालों ने पथराव शुरू कर दिया, जिससे डरकर पुलिस वाले भाग गये। इस प्रकार कालीबाई के बलिदान से सेंगाभाई के प्राण बच गये। इसके बाद पुलिस वालों का उस क्षेत्र में आने का साहस नहीं हुआ। कुछ ही दिन बाद देश स्वतंत्र हो गया। आज डूंगरपुर और सम्पूर्ण राजस्थान में शिक्षा की जो ज्योति जल रही है। उसमें कालीबाई और नानाभाई जैसे बलिदानियों का योगदान अविस्मरणीय है।