सराय ख्वाजा विद्यालय द्वारा शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित
23 मार्च को भारत माता के समस्त प्रेमी जन इन वीरों के बलिदान को द्रवित मन से श्रद्धांजलि देते हैं।
फरीदाबाद। मातृभूमि के लिए अमर होने वाले और अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले अनगिनत बलिदानी स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का देश और समाज सदैव ऋणी रहेगा। राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सराय ख्वाजा फरीदाबाद द्वारा जूनियर रेडक्रॉस, गाइड्स और सैंट जॉन एंबुलेंस ब्रिगेड के माध्यम से आयोजित कार्यक्रम में प्राचार्य रविंद्र कुमार मनचंदा, अध्यापकों और छात्र एवम छात्राओं ने अमर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। विद्यालय की जूनियर रेडक्रॉस और ब्रिगेड अधिकारी प्राचार्य रविंद्र कुमार मनचंदा ने बताया कि तेईस मार्च को तीनों महान देशभक्त सेनानी अपने देश के लिए हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे। 23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी।भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिया जाना भारत के इतिहास की सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मारकर बदला लिया था। इसके लिए तीनों को क्रूर ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा सुनाई थी। तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के अंदर ही फांसी दे दी गई। इस विषय में सुखदेव को भी दोषी माना गया था। सजा की तिथि 24 मार्च थी परंतु एक दिन पहले ही फांसी दे गई थी ताकि भारत के लोग किसी प्रकार की उग्र प्रदर्शन या प्रतिक्रिया व्यक्त न कर पाएं। प्राचार्य मनचंदा ने कहा कि देश के स्वाधीनता संघर्ष में अनेकानेक स्वतंत्रता सेनानी हुए परंतु इनमें तीन ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके विचार और व्यक्तित्व आज भी युवाओं को प्रेरणा देते हैं। आज महान देशभक्त और स्वतंत्रता के अग्रणी योद्धाओं में सम्मिलित भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के अमर बलिदान को स्मरण करने और उन से प्रेरणा ले कर उन के स्वप्नों को साकार करने का दिन है। भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव भारत मां के वे सच्चे सपूत थे जिन्होंने अपनी देशभक्ति और देशप्रेम को अपने प्राणों से भी अधिक महत्व दिया और प्राणों से भी प्रिय मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर कर गए। 23 मार्च को भारत माता के समस्त प्रेमी जन इन वीरों के बलिदान को द्रवित मन से श्रद्धांजलि देते हैं। प्राचार्य रविंद्र कुमार मनचंदा ने युवा पीढ़ी से महान स्वतं रीत्रता सेनानियों के पदचिन्हों पर चलने और उन के आदर्शों को आत्मसात करने की प्रेरणा दी और कहा कि देशप्रेम से बढ़ कर और कोई कर्तव्य नहीं हो सकता इसलिए आधुनिक समय में हमें कर्तव्यनिष्ठ हो कर देश के लिए समर्पित भाव से कार्य करने की आवश्यकता है।