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17 अक्टूबर के दिन रखा जाएगा अहोई अष्टमी व्रत : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज

माताएं अपनी सन्तान के कुशल भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं

देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई अष्टमी व्रत रखा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष अहोई अष्टमी व्रत 17 अक्टूबर के दिन रखा जाएगा। शास्त्रों में बताया गया है कि अहोई अष्टमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है और परिवार में सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। इस दिन माताएं अपनी सन्तान के कुशल भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और तारा दिखने के बाद ही व्रत का पारण करती हैं। मान्यता है कि इस दिन निर्जला व्रत रखने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होती हैं और सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत माता अहोई की आरती के बिना पूर्ण नहीं होती है। करवा चौथ के 4 दिन बाद अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। कहते हैं अहोई व्रत संतान की लंबी आयु और बेहतर स्वास्थ के लिए रखा जाता है। हर साल ये व्रत कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।
पंचांग के अनुसार, इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। मान्यता है कि इस योग में संतान की दीर्घायु के लिए रखा गया व्रत विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 17 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 29 मिनट से कार्तिक कृष्ण अष्टमी का आरंभ हो रहा है। अष्टमी तिथि का समापन 18 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 57 मिनट पर होगा। इसलिए उदया तिथि की मान्यता के अनुसार यह व्रत 17 अक्टूबर को रखा जाना सर्वमान्य है।

अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त :-

अहोई अष्टमी पूजा कब से कब तक : शाम 5 बजकर 50 मिनट से 7 बजकर 05 मिनट तक

तारों के दिखने का समय : शाम 6 बजकर 13 मिनट पर

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व :- इस व्रत में चंद्रमा की बजाए तारों को अर्घ्य दिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महिलाएं इस दिन शिव परिवार की पूजा करने के बाद तारों को अर्घ्य देती हैं। यह व्रत संतान की सलामती के लिए रखे जाने वाले व्रतों में सबसे प्रमुख है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से आपकी संतान को जीवन में कोई कष्ट नहीं होता है और लंबी आयु की प्राप्ति होती है।

अहोई अष्टमी व्रत की पूजाविधि :-पुरानी मान्यताओं के अनुसार, अहोई पूजन के लिए शाम के समय घर की उत्तर दिशा की दीवार पर गेरू या पीली मिट्टी से आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बनाई जाती हैं और विधि पूर्वक स्नान, तिलक आदि के बाद खाने का भोग लगाया जाता है। समृद्ध परिवार इस दिन चांदी की अहोई बनवाकर भी पूजन करते हैं। इसी के साथ कुछ जगह चांदी की अहोई में दो मोती डालकर विशेष पूजा करने का भी विधान है।

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