सहाना बनर्जी के सितार वादन से संगीतमय हुआ विरासत का आंगन
देहरादून के विभिन्न विद्यालयों के बच्चो ने खूबसूरती से अपनी शास्त्रीय नृत्य एवं कला का प्रदर्शन किया
देहारदून, 12 अक्टूबर। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के तीसरे दिन की शुरुआत ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। विरासत साधना कार्यक्रम के अंतर्गत देहरादून के विभिन्न विद्यालयों के बच्चो ने खूबसूरती से अपनी शास्त्रीय नृत्य एवं कला का प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम में 12 विद्यालयो के 12 बच्चो ने प्रतिभाग किया। इसके अंतर्गत बच्चो ने भरतनाट्यम एवम कथक जैसे शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम की शुरुवात में मनसा शर्मा(संत जोसेफ एकेडमी) ने अपनी भरतनाट्यम प्रस्तुति से दर्शकों का दिल जीत लिया। उसके बाद श्रृष्टि दवेली (राज हंस पब्लिक स्कूल) कथक, नंदिनी खंकवाल (कन्वेंटबॉफ जीसस एंड मेरी) भरतनाट्यम, स्नेहा बिस्वास( टच वुड स्कूल) कथक, पर अपनी प्रस्तुति दी। अंत में अंशिका चौहान (हिल फाउंडेशन ग्रुप एजुकेशन) ने भरतनाट्यम नृत्य पर प्रस्तुति देकर कार्यक्रम का समापन किया। सभी प्रतिभागियों को विरासत साधना के आयोजक कल्पना शर्मा द्वारा सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया। सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं सहाना बनर्जी द्वारा सितार वादन के प्रस्तुतियां दी गई। कार्यक्रम में उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुवात शुद्ध शास्त्रीय संगीत के घुन से की जिसमे उनका साथ शुभ महाराज ने तबले की ताल पर दिया। प्रस्तुतियों में उन्होंने राग मरू बिहाग , राग तिलक कमोद एवं अंत में उन्होंने राग मिश्र पल्लू से प्रस्तुति का समापन किया। सहाना जी की देहरादून के विरासत में यह पहली प्रस्तुति थी। सितार वादक सहाना बनर्जी रामपुर सेनिया घराने से ताल्लुक रखती हैं। सहाना संगीतकारों के परिवार में पैदा हुई है और चार साल की कम उम्र में ही उन्हें एक अद्भुत प्रतिभाशाली बच्चे के रूप में पहचाना जाने लगा था। उनके पिता संतोष बनर्जी एक प्रसिद्ध सितार और सुरबहार वादक है साथ ही वाद्य संगीत विभाग, रवींद्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता के पूर्व प्रमुख है जिन्होंने उन्हें संगीत में प्रशिक्षित किया। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध मां छबी बनर्जी से गायन संगीत का व्यापक प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। सहाना कोलकाता में वर्ष 1990 में डोवर लेन संगीत सम्मेलन में पंडित निखिल बनर्जी चैलेंज ट्रॉफी जीती और उन्हें ’सर्वश्रेष्ठ वाद्य यंत्र’ का पुरस्कार दिया गया। 1995 से ऑल इंडिया रेडियो और टेलीविज़न की ग्रेडेड आर्टिस्ट होने के अलावा सहाना ने भारत और यूरोप में कई प्रतिष्ठित स्टेज परफॉर्मेंस भी दी हैं। सहाना ने रेडियो फ्रांस द्वारा आयोजित ड्यून राइव ए ’ल’यूट्रे नामक एक अनूठी परियोजना में भी काम किया है।कार्यक्रम की आखिरी प्रस्तुति डॉ देर्बाश्री भट्टाचार्य द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत पर दिया गया। उन्होंने अपनी प्रस्तुतियों की शुरुआत राग मालकोश से की फिर उसके बाद राग सोनी की एक ठुमरी उन्होंने दर्शकों को सुनाई। जिसमें उनका सहयोग प्रसिद्ध हारमोनियम वादक पारोमिता तथा लोकप्रिय तबला वादक मिथिलेश झा और उनके साथ योगेश खेतवाल , पारस उपाध्याय (तानपुरा) ने दीया। देर्बाश्री भट्टाचार्य जी ने स्वरमंडल संग अपनी गायकी का प्रदर्शन किया है और आखिर में राग परमेश्वरी पर एक भजन ने लोगों की प्रशंसा बटोरी और उन्होंने अपनी प्रस्तुति का समापन किया। डॉ देर्बाश्री भट्टाचार्य, संगीत और ललित कला संकाय के डॉ (श्रीमती) एम. विजय लक्ष्मी के छात्र हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से भारतीय शास्त्रीय संगीत में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। डॉ देबाश्री भट्टाचार्य कम उम्र में ही विभिन्न गुरुओं से शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया था और साधारण संगीत, रवींद्र संगीत, कला, शिल्प और मूर्तिकला सहित संगीत के विभिन्न रूपों को सीखा। उन्होंने पूरे भारत में संगीत पर प्रदर्शन दिया है। उन्हें ’द इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिएटिव आर्ट्स’ से संगीत और उत्कृष्टता पुरस्कार 2005 में कई पुरस्कार मिले हैं। डॉ देर्बाश्री भट्टाचार्य एक गीत लेखक और संगीतकार भी हैं। उन्होंने बंगाली भाषा को समृद्ध बनाने और संस्कृति को बनाए रखने के लिए एकेडमी ऑफ बांग्ला आर्ट एंड कल्चर (एबीएसी) जैसे संस्था में पढ़ाया है। पेंटिंग, और मूर्तिकला जैसे अन्य कलाओं में उनके जुनून को देखा जा सकता है साथ ही साथ फोटोग्राफी में उनकी रुचि है। 23 अक्टूबर 2022 तक चलने वाला यह फेस्टिवल लोगों के लिए एक ऐसा मंच है जहां वे शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के जाने-माने उस्तादों द्वारा कला, संस्कृति और संगीत का बेहद करीब से अनुभव कर सकते हैं। इस फेस्टिवल में परफॉर्म करने के लिये नामचीन कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। इस फेस्टिवल में एक क्राफ्ट्स विलेज, क्विज़ीन स्टॉल्स, एक आर्ट फेयर, फोक म्यूजिक, बॉलीवुड-स्टाइल परफॉर्मेंसेस, हेरिटेज वॉक्स, आदि होंगे। यह फेस्टिवल देश भर के लोगों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और उसके महत्व के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का मौका देता है। फेस्टिवल का हर पहलू, जैसे कि आर्ट एक्जिबिशन, म्यूजिकल्स, फूड और हेरिटेज वॉक भारतीय धरोहर से जुड़े पारंपरिक मूल्यों को दर्शाता है। रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृत्य, शिल्प, पेंटिंग, मूर्तिकला, रंगमंच, कहानी सुनाना, पारंपरिक व्यंजन, आदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुणः पहचाना जाने लगा है।