उपराष्ट्रपति ने यूएनएससी में भारत के उचित प्रतिनिधित्व का आह्वान किया
उपराष्ट्रपति ने कहा कि सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत एक स्वतंत्र और शांतिपूर्ण नियम आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र चाहता है,
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज इस बात पर प्रकाश डाला कि समुद्रों में अपार अप्रयुक्त संपदा वैश्विक भागीदारों के बीच प्रतिस्पर्धा के लिए नया फ्रंटिअर बन गया है और उन्होंने समुद्रों और इसकी संपदा के वैश्विक भागीदारों के प्रतिस्पर्धी दावों को रोकने के लिए एक नियामक व्यवस्था और इसके प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता पर बल दिया। आज नई दिल्ली में ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद’ के 2023 संस्करण में मुख्य भाषण देते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत एक स्वतंत्र और शांतिपूर्ण नियम आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र चाहता है, जिसमें वैध व्यापार का मुक्त और अप्रतिबंधित प्रवाह हो। स्थापित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और समझौतों के अनुसार, नौवाहन और ओवर-फ्लाइट के लिए स्वतंत्रता का आह्वान करते हुए, श्री धनखड़ ने जोर देकर कहा, “हम एक न्यायसंगत वैश्विक नियामक व्यवस्था चाहते हैं, जो समुद्री संसाधनों और समुद्री तल के स्थायी और न्यायसंगत दोहन के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) पर अधिकार का सम्मान करता है।” वैश्विक शांति और सद्भाव के लिए एक स्थिर कारक के रूप में एक अग्रणी अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत के उद्भव का वर्णन करते हुए, उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि भारत को यह सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण और रचनात्मक भूमिका निभानी होगी कि हम वैश्विक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए आगे बढ़कर नेतृत्व करें। “आप कमजोर हालात में शांति लागू नहीं कर सकते, शांति पर बातचीत नहीं कर सकते और शांति की आकांक्षा नहीं कर सकते। आपको मजबूत होना होगा और आपको सभी मौलिक तथ्यों पर मजबूत होना होगा। मौजूदा परिदृश्य में भारत इसके लिए बहुत उपयुक्त है।” यह उल्लेख करते हुए कि विश्व वर्तमान में दो गंभीर विध्वंसक स्थितियों का सामना कर रहा है और सुरंग के आखिर में कोई रोशनी भी नहीं दिख रही है, उपराष्ट्रपति ने विशेषज्ञों से समाधान खोजने के लिए लीक से हटकर सोचने का आह्वान किया। यह रेखांकित करते हुए कि एक संप्रभु राष्ट्र के लालच को केवल तभी नियंत्रित किया जा सकता है, जब अन्य राष्ट्र एक साथ आते हैं, श्री धनखड़ ने कहा कि ऐसे में सहयोगात्मक सुरक्षा और नवप्रवर्तनकारी भागीदारी आगे बढ़ने का रास्ता प्रतीत होती है। उन्होंने कहा, ”यही एकमात्र रास्ता है, कोई भी देश अकेला नहीं रह सकता, एकजुटता के साथ कार्रवाई होनी चाहिए।” अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने इस बात पर भी दुख और पीड़ा व्यक्त की कि भारत, एक ऐसा देश जिसमें सारी दुनिया की जनसंख्या का छठवां हिस्सा रहता है, को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है, जो निश्चित रूप से इस वैश्विक निकाय की प्रभावकारिता को कम करता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है, जब हमें इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। एआई, रोबोटिक्स, ड्रोन और हाइपरसोनिक हथियारों जैसी परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन क्षेत्रों की महारत और उत्कृष्ट निपुणता भविष्य के स्ट्रटीजिक हैव और स्ट्रटीजिक हैव नॉट निर्धारित करेगा। इस संबंध में, उन्होंने भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र से आगे आने, नागरिक और सैन्य बलों के साथ समन्वय करने और ऐसी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए काम करने का आग्रह किया, जैसा कि पश्चिमी देशों में किया जा रहा है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि “जैसे-जैसे भारत की आर्थिक निपुणता बढ़ती है, वैसे-वैसे वैश्विक और क्षेत्रीय मामलों में हमारी हिस्सेदारी और चुनौतियां भी बढ़ती हैं” और उन्होंने इस क्षेत्र में सुरक्षा उपायों के लिए एक रणनीति विकसित करने का आह्वान किया, ताकि इस क्षेत्र में राष्ट्रों के बीच एक तैयार, फिर से उठ खड़े होने वाला और प्रासंगिक हितधारक के रूप में भारत की स्थिति मजबूत हो सके। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के हमारे सदियों पुराने लोकाचार का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में भारत को शांति के निरंतर समर्थक के रूप में देखा जा सकता है, जिसने कभी भी विस्तारवादी दृष्टिकोण नहीं अपनाया। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि भारत के विकास और समृद्धि के लिए हमारे पड़ोस की शांति और स्थिरता महत्वपूर्ण है। हितधारकों और रणनीतिक थिंक टैंकों के बीच इस संवाद के आयोजन के लिए भारतीय नौसेना को बधाई देते हुए, उपराष्ट्रपति ने अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली के तत्वमीमांसा पर फिर से विचार करने और बहस करने की तत्काल आवश्यकता व्यक्त की कि कैसे डिटरेंस को मजबूत किया जाए और कूटनीति को कल्पनाशील तरीकों से पुनर्जीवित किया जाए, ताकि झगड़ों को रोका जा सके और उनका समाधान निकाला जा सके।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने कहा कि हम एक अस्थिर वैश्विक परिदृश्य का सामना कर रहे हैं, जिसमें कई कठिन चुनौतिया सामने हैं जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार और कनेक्टिविटी के रखरखाव को बाधित कर सकती हैं। उन्होंने रेखांकित किया, ”इन खतरनाक प्रवृत्तियों को रोकने के लिए और चुनौतियों से निपटने के लिए एक रणनीति का विकास पूरी मानवता के कल्याण के लिए प्राथमिकता है। इस बात का उल्लेख करते हुए कि सभी तकनीकी प्रगति के बावजूद, समुद्री डकैती और नशीली दवाओं की तस्करी अभी भी एक चुनौती बनी हुई है, श्री धनखड़ ने कहा कि इनसे उत्पन्न धन का उपयोग राज्येतर तत्वों द्वारा शांति और सद्भाव को बाधित करने के लिए किया जाता है। उन्होंने कहा, ”वैश्विक शांति प्रयासों में राज्येतर तत्व सबसे बड़े नकारात्मक हस्तक्षेप के रूप में उभरे हैं। निजी प्रयास उन्हें बेअसर करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकते हैं। केवल राष्ट्रों के बीच एकजुटता और मज़बूत तंत्र के द्वारा इनसे निपटा जा सकता है।” इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति ने कैप्टन हिमाद्री दास द्वारा लिखित पुस्तक ‘बिल्डिंग पार्टनरशिप: इंडिया एंड इंटरनेशनल कोऑपरेशन फॉर मैरीटाइम सिक्योरिटी’ का विमोचन भी किया। नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार, राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन के अध्यक्ष एडमिरल करमबीर सिंह (सेवानिवृत्त), वाइस एडमिरल प्रदीप चौहान (सेवानिवृत्त), राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन के महानिदेशक और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।