लोकपर्व हरेला पर होती हैं शिव और माता पार्वती की पूजा : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
हरेला पर्व हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने का सूचक
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने हरेला पर्व की जानकारी देते हुये बताया की इस साल उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला 16 जुलाई रविवार को मनाया जाएगा। हर साल हरेला पर्व कर्क संक्रांति को श्रावण मास के पहले दिन मनाया जाता है। त्योहार के ठीक 9 दिन पहले हरेला बोया जाता हैं, लेकिन कुछ लोग 11 दिन का हरेला बोते हैं। यह पर्व उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में विशेष रूप से मनाया जाने वाला है। इस दिन शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। देवभूमि उत्तराखंड को शिव भूमि भी कहा जाता है। यहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के साथ शिव जी की ससुराल भी है। यही वजह है कि यहां हरेला पर्व की बहुत अहमियत है। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की हरेला का अर्थ हरियाली से है। यह पर्व हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है। उत्तराखंड में हरेला पर्व से सावन शुरू होता है। इस पर्व को शिव पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। हरेला पर्व से 9 दिन पहले टोकरी में पांच या सात प्रकार के अनाज बोए जाते हैं और हरेला के दिन इसे काटा जाता है। मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा होगा, किसान को कृषि में अधिक लाभ मिलेगा। हरेला बोने के लिए स्वच्छ मिट्टी का उपयोग किया जाता है, इसमें कुछ जगह घर के पास साफ जगह से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है और उसे छानकर टोकरी में जमा लेते हैं और फिर अनाज डालकर उसे सींचा जाता है। इसमें धान, मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट शामिल होते हैं। हरेला को घर या देवस्थान पर भी बोया जाता है। घर में इसे मंदिर के पास रखकर 9 दिन तक देखभाल की जाती है और फिर 10वें दिन घर के बुजुर्ग इसे काटकर अच्छी फसल की कामना के साथ देवताओं को समर्पित करते हैं।
हरेला घरों में ही लगाया जाता है। हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला – चैत्र मास, दूसरा – सावन मास और तीसरा – आश्विन (क्वार) मास में। वैसे तो हरेला को हर घर में बोया जाता है लेकिन कुछ गांव में सामूहिक रूप से स्थानीय ग्राम देवता के मंदिर में भी हरेला बोई जाती है। 10 दिन की प्रक्रिया में मिश्रित अनाज को देवस्थान में उगाकर कर्क संक्रांति के दिन हरेला काट कर यह त्योहार मनाया जाता है। जिस तरह मकर संक्रांति से सूर्य भगवान उत्तरायण हो जाते हैं और दिन बढ़ने लगते हैं, वैसे ही कर्क संक्रांति से सूर्य भगवान दक्षिणायन हो जाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन से दिन रत्ती भर घटने लगते है। इस तरह रातें बड़ी होती जाती हैं। हरेला बोने के लिए हरेला त्योहार से 12 से 15 दिन पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं। घर के पास साफ जगह से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है और उसे छानकर रख लिया जाता है। हरेला में 7 या 5 किस्म के अनाज का मिलाकर बोया जाता है। इसमें धान, मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट शामिल होते हैं। इसे मंदिर के कोने में रखा जाता है। इसे बोने से लेकर देखभाल तक घर की महिलाएं करती हैं। इस दिन पकवान बनाए जाते हैं। कटे हुए हरेले में से कुछ भाग छत पर रख दिया जाता है। घर में छोटों को बड़े लोग हरेले के आशीष गीत के साथ हरेला लगाते हैं, इसे शुभ मानते हैं। गांव में या रिश्तेदारी में नवजात बच्चों को हरेला भेजा जाता है। हरेला उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में प्रमुखता से मनाया जाता है। इस दिन हरेला की शुभकामनाएं देकर बुजुर्ग बच्चों को आशीर्वाद देते हैं। इस दिन हम लोग पौधे लगाते हैं।