उत्तराखंड समाचार

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अलख देश भर में जगाने वाले कर्नाटक केसरी

शिक्षा पूर्ण कर वे सरकारी सेवा में लग गये, पर कुछ समय बाद वे प्रचारक बन कर कर्नाटक ही पहुंच गये।

देहरादून। भारतीय जनसंघ के जन्म से लेकर अपनी मृत्यु तक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अलख देश भर में जगाने वाले, कर्नाटक केसरी के नाम से विख्यात श्री जगन्नाथ राव जोशी का जन्म कर्नाटक के नरगुंड गांव में 23 जून, 1920 को हुआ था। उनके पिताजी पर उस गांव के धर्मस्थलों की देखभाल की जिम्मेदारी थी। कर्नाटक मूल के पिता और महाराष्ट्र मूल की मां के कारण जगन्नाथ जी को बचपन से ही दोनों भाषाओं में महारत प्राप्त हो गयी।
कक्षा तीन तक की शिक्षा गांव में पाकर वे अपने मामा के पास पुणे चले गये। उनकी शेष शिक्षा वहीं हुई। उन्होंने अंग्रेजी विषय लेकर बी.एड किया था। अतः अंग्रेजी पर भी उनका प्रभुत्व हो गया। पुणे में ही उनका सम्पर्क संघ शाखा से हुआ। शिक्षा पूर्ण कर वे सरकारी सेवा में लग गये, पर कुछ समय बाद वे प्रचारक बन कर कर्नाटक ही पहुंच गये। वहां उनकी तत्कालीन प्रांत प्रचारक श्री यादवराव जोशी से अत्यधिक घनिष्ठता हो गयी। इस कारण उनके जीवन पर श्री यादवराव का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
संघ के पहले प्रतिबन्ध के समय वे जेल में रहे। जब गोवा मुक्ति के लिए सत्याग्रह हुआ, तब पहले जत्थे का नेतृत्व उन्होंने किया। वे लगभग पौने दो साल जेल में रहे। वहां उन पर जो अत्याचार हुए, उसका प्रभाव जीवन भर रहा, पर उन्होंने कभी इसकी चर्चा नहीं की। गोवा मुक्त होने पर शासन ने अनेक सत्याग्रहियों को मकान दिये, पर जगन्नाथ जी ने यह स्वीकार नहीं किया।
जनसंघ में रहकर भी वे संघर्ष के काम में सदा आगे रहते थे। 1965 में कच्छ समझौते के विरोध में हुए आंदोलन के लिए उन्होंने पूरे देश में भ्रमण कर अपनी अमोघ वाणी से देशवासियों को जाग्रत किया। 1967 में वे सांसद बने। आपातकाल के प्रस्ताव का उन्होंने प्रबल विरोध किया। एक सांसद ने जेल का भय दिखाया, तो वे उस पर ही बरस पड़े, ‘‘ जेल का डर किसेे दिखाते हो; जो सालाजार से नहीं डरे, जो पुर्तगालियों ने नहीं डरे, तो क्या तुमसे डरेंगे ? ऐसी धमकी से डरने वाले नामर्द तुम्हारी बगल में बैठे हैं।’’
इस पर उन्हें दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया। जनता पार्टी के शासन में उन्हें राज्यपाल का पद प्रस्तावित किया गया; पर उन्होंने इसके बदले देश भर में घूम कर संगठन को सबल बनाने का काम स्वीकार किया।
जगन्नाथ जी कथा, कहानी, शब्द पहेली, चुटकुलों और गपशप के सम्राट थे। हाजिरजवाबी में वे बीरबल के भी उस्ताद थे। व्यक्तिगत वार्ता में ही नहीं, तो जनसभाओं में भी उनके ऐसे किस्सों का लोग खूब आनंद उठाते थे। उनके क्रोध को एक मित्र ने ‘प्रेशर कुकर’ की उपाधि दी थी, जो सीटी तो बहुत तेज बजाता है; पर उसके बाद तुरन्त शांत भी हो जाता है।
जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी के काम को देश भर में पहुंचाने के लिए जगन्नाथ जी ने 40 वर्ष तक अथक परिश्रम किया। कर्नाटक में उन्होंने संगठन को ग्राम स्तर तक पहुंचाया। अतः उन्हें ‘कर्नाटक केसरी’कहा जाता है। प्रवास की इस अनियमितता के कारण वे मधुमेह के शिकार हो गये। अंगूठे की चोट से उनके पैर में गैंग्रीन हो गया और उसे काटना पड़ा। लेकिन फिर भी वे ठीक नहीं हो सके और 15 जुलाई, 1991 को उनका देहांत हो गया।
जगन्नाथ जी यद्यपि अनेक वर्ष सांसद रहे; पर देहांत के समय उनके पास कोई व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं थी। गांव में उनके हिस्से की खेती पट्टेदार कानून में चली गयी। मां की मृत्यु के बाद उन्होंने पुश्तैनी घर से भी अधिकार छोड़ दिया। इस प्रकार प्रचारक वृत्ति का एक श्रेष्ठ आदर्श उन्होंने स्थापित किया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button