विरासत में लोक नृत्य की रही धूम
नृत्य सरल होने के साथ-साथ अद्वितीय भी है।
देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के आठवें दिन की सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम के अंतर्गत गोवा जनजाति के कुनबी लोक नृत्य प्रस्तुत किया गया जो ’कला साम्राज्य, करचोरम, गोवा द्वारा प्रस्तुत किय गया। उसके बाद उन्होंने अपनी दूसरी प्रस्तुति अपने लोकगीत ’ओवियो’ से की जो की शादियों में गया जाने वाला प्रचलित लोकगीत है। उसके बाद उन्होंने विरासत के माहोल को मद्देनजर रखते हुए ढालों पारंपरिक प्रमाणिक लोकगीत में एक प्रस्तुति दी जिसमे उनके वेस्टर्न संस्कृति का संगम देखने को मिला।
कुनबी समुदाय ने कुनबी लोक नृत्य को अपना नाम दिया है। यह जनजाति गोवा के साल्सेते तालुका क्षेत्र में पाई जा सकती है। नृत्य सरल होने के साथ-साथ अद्वितीय भी है। यह विभिन्न उत्सव और सामाजिक अवसरों पर किया जाता है। महिलाएं समूह में नृत्य करती हैं और इस नृत्य को करते हुए तेजी से आगे बढ़ती हैं लेकिन वे बहुत ही शालीनता से चलती भी हैं। चरणों की अच्छी तरह से गणना की जाती है और समन्वय प्रभावशाली होता है। चूंकि नृत्य में कोई धार्मिक गीत या गतिविधियाँ शामिल नहीं हैं, इसलिए यह सुरक्षित रूप से माना जा सकता है कि यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से है और केवल महिलाएं ही इस नृत्य में भाग लेती हैं जबकि पुरुष पृष्ठभूमि में वाद्य यंत्र बजाते हैं।
सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम कि अगली प्रस्तुतियों में कुमारेश राजगोपालन एवं जयंती कुमारेश ने वायलन और वीणा पर ज्ुगलबंदी प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने कुमारेश राजगोपालन (वायलिन) जयंती कुमारेश (वीणा) उनकी संगत में जया चंद्र राव मृदंगम एवं प्रमात किरण तबला पर थे। उन्होंने कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में प्रस्तुति दी। उनकी टीम का नाम ’स्ट्रिंग अटैच्ड’ हैं। आज कि प्रस्तुतियों में उन्होंने कर्नाटक राग के सभी पारंपरिक राग एवं उसका मिश्रित संस्करण मे एक अनोखी ज्ुगलबंदी प्रस्तुत किया। कुमारेश राजगोपालन को उनके बड़े भाई, गणेश राजगोपालन के साथ सहयोगी संगीत के लिए भारतीय शास्त्रीय संगीत में जानामान नाम है। उनके पिता, श्री टी.एस. द्वारा प्रशिक्षित राजगोपालन, एक अनुभवी वायलिन वादक है गणेश और कुमारेश ने अपना पहला मंच प्रदर्शन तब दिया जब कुमारेश सिर्फ 5 वर्ष के थे। जब वह 10 वर्ष के थे, तब तक कुमारेश ने अपने बड़े भाई के साथ अपनी सौवीं स्टेज की उपस्थिति पूरी की। कुमारेश ने विश्व प्रसिद्ध वीणा (ल्यूट) वादक जयंती कुमारेश से शादी की है और दोनों ने मिलकर भारत के दो सबसे प्राचीन वाद्य यंत्रों पर अपनी कलात्मकता प्रस्तुत की है, जिससे संगीत की अवधारणा का एक नया स्तर तैयार हुआ है। उन्हें कर्नाटक वाद्य संगीत (वायलिन) के लिए 2018 के संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। शास्त्रीय कर्नाटक संगीत की व्याख्या में वायलिन एक भारी मधुर स्वर और रंग प्राप्त करता है और इन्हें उनके द्वारा उल्लेखनीय कौशल और कलात्मकता के साथ प्रस्तुत किया जाता है। कुमारेश अपने भाई गणेश के साथ प्रदर्शन करने के अलावा, फिल्मों और नृत्य प्रस्तुतियों के लिए संगीत भी देते हैं। उन्होंने ’डांस लाइक ए मैन’ और ’चंद्रिकाई’ फिल्मों के लिए संगीत बजाया। उनका अपना संगीत रूप राग प्रवाहम् भारतीय रागम और थालम की पेचीदगियों को सामने लाता है। उन्होंने भारत, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम, स्विजरलैंड, मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया, मालदीव और ऑस्ट्रेलिया सहित देशों और क्षेत्रों में कई वैश्विक समारोहों में प्रदर्शन किया है। जयंती कुमारेश एक भारतीय वीणा संगीतकार हैं। जयंती संगीतकारों के वंश से आती है जो छह पीढ़ियों से कर्नाटक संगीत का अभ्यास कर रहे हैं और 3 साल की उम्र में सरस्वती वीणा बजाना शुरू कर दिया था, उनकी माँ, लालगुडी राजलक्ष्मी, उनकी पहली शिक्षिका थीं और बाद में उन्होंने अपनी मौसी, पद्मावती अनंतगोपालन से गहन प्रशिक्षण लिया। उन्हें एस. बालचंदर ने भी पढ़ाया और उनके साथ परफॉर्म भी किया। उनकी शादी वायलिन वादक गणेश-कुमारेश के छोटे कुमारेश राजगोपालन से हुई है। वह वायलिन वादक लालगुडी जयरामन की भतीजी हैं। जयंती को विभिन्न त्योहारों और संगीत अकादमियों द्वारा कई बार सम्मानित किया गया है जिसमें, वीणा धनम्मल स्मृति पुरस्कार, कल्कि मेमोरियल अवार्ड, संस्कृति विभाग से फैलोशि, ऑल इंडिया रेडियो से ए-टॉप ग्रेडिंग तमिलनाडु सरकार की ओर से कलैमामणि का राज्य पुरस्कार, कला संगम, मुंबई से कला रत्न, मिलापफेस्ट, लंदन से विश्व कला रत्न भवन का संगीत शिखर सम्मान, भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली एवं अन्य पुरस्कार शामिल है।