उत्तराखंड समाचार

13 अक्टूबर 2022 रखा जाएगा करवा चौथ व्रत : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज

कार्तिक माह में करवा चौथ का व्रत करती है सुहागिनें : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज

देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की करवा चौथ व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा। इस साल करवा चौथ की पूजा का समय शाम 06 बजकर 01 मिनट से रात 07 बजकर 15 मिनट तक है। वहीं उत्तराखंड राज्य मे चांद निकलने का समय रात 08 बजकर19 मिनट पर हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ व्रत रखा जाता है। सुहागिन महिलाओं के द्वारा अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत किया जाता है। कहा जाता है कि विधि पूर्वक इस व्रत को करने से पति को लंबी आयु मिलती है। करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक उपवास रखती हैं। इसके बाद शाम को चंद्रोदय के बाद पूजा-अर्चना करती हैं। फिर चंद्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत व्रत का पारण करती हैं। मान्यता है कि इस दिन जो पत्नी पूर्ण विश्वास के साथ माता करवा की पूजा करती हैं उसके पति पर कभी कोई आंच नहीं आती। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, करवा चौथ के दिन एक सुहागन सोलह श्रृंगार करके चंद्रदेव की पूजा करती है। माना जाता है कि ऐसा करने शुभ फलों की प्राप्ति होती है। अगर आप भी इस व्रत को विधिवत तरीके से करती हैं, तो इस बार ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, इस दिन महिलाएं राशि के अनुसार, अपने परिधान का चुनाव करें, तो ज्यादा शुभ माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध शुरू हो गया। जंग के मैदान में दानव देवताओं पर हावी हो गए थे। युद्ध में सभी देवताओं को संकट में देख उनकी पत्नियां विचलित होने लगीं। पति के प्राणों की रक्षा के उपाय हेतु सभी स्त्रियां ब्रह्मदेव के पास पहुंची। ब्रह्मा जी ने देवताओं की पत्नियों से करवा चौथ व्रत करने को कहा। ब्रह्मदेव बोले कि इस व्रत के प्रभाव से देवताओं पर कोई आंच नहीं आएगी और युद्ध में वह जीत प्राप्त करेंगे। ब्रह्मा जी की बात सुनकर सभी ने कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप करवा माता ने देवताओं के प्राणों की रक्षा की और वह युद्घ में विजय हुए।
मेष राशि : इस राशि के स्वामी मंगल ग्रह है। इसलिए इस राशि की महिलाएं लाल या फिर ऑरेंज रंग की साड़ी, लहंगा आदि पहन सकती हैं।
वृषभ राशि : इस राशि के स्वामी बुध ग्रह है। बुध ग्रह को हरा रंग काफी पसंद है। इसलिए इस राशि की महिलाएं हरे रंग की आउटफिट्स पहन सकती हैं।
मिथुन राशि : इस राशि का स्वामी बुध ग्रह है। बुध ग्रह को मजबूत करने के लिए इस राशि की महिलाएं हरे रंग के आउटफिट्स के साथ मैचिंग चूड़ियां पहनें।
कर्क राशि : इस राशि का स्वामी चंद्रमा है। चंद्रमा का सफेद रंग है। लेकिन सफेद रंग पहनना शुभ नहीं माना जाता है। ऐसे में इश राशि के महिलाएं ऐसी साड़ी पहने जिसमें थोड़ा सा कहीं पर सफेद रंग हो।
सिंह राशि : इस राशि के स्वामी सूर्य है। ऊर्जा का प्रतीक सूर्य का शुभ रंग लाल, नारंगी फिर गोल्डन है। ऐसे में इस राशि की महिलाएं इस रंग के परिधान का चुनाव करें।
कन्या राशि : कन्या राशि के स्वामी बुध है। ऐसे में इस राशि की महिलाएं पीले या फिर हरे रंग के परिधान और चूड़ियों का चुनाव करें, तो शुभ होगा।
तुला राशि : तुला राशि के स्वामी शुक्र है। ऐसे में इस राशि की महिलाएं सफेद या फिर गोल्डन रंग के परिधान पहनें।
वृश्चिक राशि : इस राशि के स्वामी मंगल ग्रह है। इसलिए इस राशि की महिलाएं लाल रंग के आउटफिट्स का चुनाव करें। इसके साथ ही लाल रंग की चूड़ियां पहनें।
धनु राशि : धनु राशि के स्वामी बृहस्पति है। इस राशि की महिलाएं पीले या फिर गोल्डन रंग के साड़ी, लहंगा या फिर शूट पहनें।
मकर राशि : मकर राशि के स्वामी शनि ग्रह है। इस ग्रह का शुभ रंग रंग नीला है। इसलिए इस राशि की महिलाएं नीला रंग पहने, तो शुभ साबित होगा।
कुंभ राशि : कुंभ राशि के भी स्वामी शनिदेव है। इसलिए इस राशि के महिलाएं नीले रंग के आउटफिट्स का चुनाव करें।
मीन राशि : इस राशि के स्वामी बृहस्पति देव है। इसलिए इस राशि की महिलाएं पीले या फिर गोल्डन रंग के आउटफिट्स खरीदें।
करवा चौथ तिथि : पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की की शुरुआत 13 अक्टूबर को रात 01 बजकर 59 मिनट पर होगी। वहीं अगले दिन 14 अक्टूबर को सुबह 03 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा।
करवा चौथ का शुभ मुहूर्त : इस दिन अमृत काल मुहूर्त शाम 04 बजकर 08 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 50 मिनट तक है।
अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 21 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 07 मिनट तक है।
इसके अलावा ब्रह्म मुहूर्त शाम 04 बजकर 17 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 05 बजकर 06 मिनट तक है।
वहीं करवा चौथ व्रत की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 13 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 46 मिनट से 6 बजकर 50 मिनट तक है।
करवा चौथ की पूजा विधि : मान्यताओं के अनुसार, करवाचौथ के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करके दीपक जलाएं। फिर देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करें और निर्जला व्रत का संकल्प लें। शाम के समय पुनः स्नान के बाद जिस स्थान पर आप करवा चौथ का पूजन करने वाले हैं, वहां गेहूं से फलक बनाएं और उसके बाद चावल पीस कर करवा की तस्वीर बनाएं। इसके उपरांत आठ पूरियों की अठवारी बनाकर उसके साथ हलवा या खीर बनाएं और पक्का भोजन तैयार करें। इस पावन दिन शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसे में पीले रंग की मिट्टी से गौरी कि मूर्ति का निर्माण करें और साथ ही उनकी गोद में गणेश जी को विराजित कराएं। अब मां गौरी को चौकी पर स्थापित करें और लाल रंग कि चुनरी ओढ़ा कर उन्हें शृंगार का सामान अर्पित करें। गौरी मां के सामने जल भर कलश रखें और साथ ही टोंटीदार करवा भी रखें जिससे चंद्रमा को अर्घ्य दिया जा सके। इसके बाद विधि पूर्वक गणेश गौरी की विधिपूर्वक पूजा करें और करवा चौथ की कथा सुनें। कथा सुनने से पूर्व करवे पर रोली से एक सतिया बनाएं और करवे पर रोली से 13 बिंदिया लगाएं। कथा सुनते समय हाथ पर गेहूं या चावल के 13 दाने लेकर कथा सुनें। पूजा करने के उपरांत चंद्रमा निकलते ही चंद्र दर्शन के उपरांत पति को छलनी से देखें। इसके बाद पति के हाथों से पानी पीकर अपने व्रत का पारण करें।
करवा चौथ कथा : करवा चौथ व्रत कथा के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे थे और करवा नाम की एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन उनके घर में व्रत रखा गया। रात्रि को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उससे भी भोजन करने का आग्रह किया। उसने यह कहकर मना कर दिया कि अभी चांद नहीं निकला है और वह चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। अपनी सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गयी। सबसे छोटा भाई एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला – व्रत तोड़ लो; चांद निकल आया है। बहन को भाई की चतुराई समझ में नहीं आयी और उसने खाने का निवाला खा लिया। निवाला खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उसका पति पुनः जीवित हो गया।
व्रत की पूजा-विधि
1. सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफ़ाई करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।
2. यह व्रत उनको संध्या में सूरज अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए।
3. संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए ख़ास मिट्टी के कलश) रखें।
4. पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि थाली में रखें। दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी रहना चाहिए, जिससे वह पूरे समय तक जलता रहे।
5. चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए। अच्छा हो कि परिवार की सभी महिलाएँ साथ पूजा करें।
6. पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएँ।
7. चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए।
8. चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद ले और सास उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे।
करवा चौथ में सरगी : करवा चौथ का त्यौहार सरगी के साथ आरम्भ होता है। यह करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। शाम को सभी महिलाएँ श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं। इस रस्म में महिलाएँ एक घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस रस्म के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा गाती हैं। भारत के अन्य प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button