राज्य की जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रही सरकार : करन माहरा
उत्तराखंड में जमीनों की खुली नीलामी की छूट की संभावना और भूमि का अनियंत्रित क्रय एवं विक्रय का खेल 6 दिसंबर 2018 के बाद तब शुरू हुआ था
देहरादून। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने भू-कानून सुधार के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित उच्च अधिकार प्राप्त समिति की संस्तुतियों पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि समिति की शिफारिशें भू-सुधार की बजाय भूमि की खरीद-फरोख्त सरकार के चहेते उद्योगपतियों एवं बडे लोगों तक सीमित करने जैसी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि भाजपा सरकार उच्च अधिकार प्राप्त समिति के गठन के समय से लेकर रिपोर्ट पेश करने तक समिति के नाम पर जनता और मीडिया का ध्यान प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों से भटकाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने पिछले 4 सालों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए अपने चहेते खास लोगों को जमीन खरीदने की अनुमति देकर उत्तराखंड की बहुमूल्य भूमि को कौडियों के भाव नीलाम किया है। उत्तराखंड में जमीनों की खुली नीलामी की छूट की संभावना और भूमि का अनियंत्रित क्रय एवं विक्रय का खेल 6 दिसंबर 2018 के बाद तब शुरू हुआ था जब पिछली भाजपा सरकार ने उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 143(क) और 154 (2) में संशोधन कर उत्तराखंड में औद्योगीकरण (उद्योग, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य), कृषि और उद्यानिकी के नाम पर किसी को भी, कहीं भी, कितनी ही मात्रा में जमीनें खरीदने की छूट दे दी थी। भूमि क्रय-विक्रय के नियमों में बदलाव करने के बाद पिछले 4 सालों में भाजपा सरकार ने अपने चहेते उद्योगपतियों, धार्मिक और सामाजिक संगठनों को अरबों की जमीनें खरीदने की अनुमति दी है।
प्रदेश कंाग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने राज्य के सभी जिलाधिकारियों से जिलेवार विभिन्न उद्योगपतियों, सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं के नाम पर भूमि खरीदने की स्वीकृतियों का ब्यौरा भी मांगा गया था। उन्होंने कहा कि राज्य की जनता को भी यह जानने का पूरा अधिकार है कि 6 दिसंबर 2018 को उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की दो धाराओं में परिवर्तन के उपरान्त राज्य सरकार अथवा अधिकारियों ने किस-किस को कितनी जमीन खरीदने की अनुमति प्रदान की है? उन्होंने कहा कि शुचिता एवं पारदर्शिता का दावा करने वाली राज्य सरकार को इस बीच अपने चहेतों को दी गयी राज्य की बहुमूल्य भूमि का पूरा विवरण देना चाहिए। साथ ही सरकार राज्य को यह भी सार्वजनिक करना चाहिए कि पिछले 4 सालों में अपने चहेते उद्योगपतियों को भारी मात्रा में उत्तराखंड की बहुमूल्य जमीन उपहार में देने के बाद राज्य में कितना निवेश आया और कितने लोगों को इन निवेशों के द्वारा रोजगार मिला? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में टेनेंसी एक्ट की धारा-118 लागू है तथा वहां पर कोई भी बाहरी व्यक्ति निवेश के नाम पर जमीन नही खरीद सकता है साथ ही निवेश करने वाला व्यक्ति भले ही भू स्वामी का पार्टनर बन जाये परंतु भूमि हिमाचल के मूल निवासी के ही नाम रहती है। सरकार को बताना चाहिए क्या भू-कानून सुधार के लिए गठित उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने उत्तराखंड में भी ऐसा कोई प्राविधान करने की संस्तुति की है? उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति ने भूमि खरीदने की अनुमति देने के माध्यम को बदल कर राज्य की मासूम जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश मात्र की है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान में उत्तराखंड में प्रचलित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) में जन भावनाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर परिवर्तन करने की बात की गई है जबकि समिति की रिपोर्ट के विभिन्न बिंदुओं से साफ पता चलता है कि केवल बड़े और प्रभावशाली लोगों को जो भूमि खरीदने की अनुमति पहले जिला प्रशासन से लेनी पडती थी वह अनुमति अब सीधे शासन स्तर से लेनी होगी। करन माहरा ने यह भी कहा कि समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट में यह भी स्वीकारा गया है कि, अभी तक जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है, परन्तु कतिपय प्रकरणों में ऐसी अनुमति का उपयोग कृषि, औद्यानिक प्रयोजन न करके रिसोर्ट, निजी बंगले बनाकर उस भूमि का दुरुपयोग किया गया है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में लोग भूमिहीन हो रहें और रोजगार सृजन भी नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि जिन जमीन खरीदने की अनुमतियों का दुरुपयोग हुआ है उन जमीनों को राज्य सरकार में निहित किया जाना चाहिए था परन्तु ऐसा नहीं किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि एक तरफ जिलाधिकारियों द्वारा दी गयी अनुमतियों के दुरुपयोग की बात सरकार स्वीकार रही है तथा भूमि खरीद की अनुमतियां जिलाधिकारी स्तर के बजाय शासन स्तर से अनुमति लेने का प्रावधान करने की बात कह रही है, क्या सरकार इस बात की गारंटी देती है कि शासन स्तर से ली गई अनुमतियों का दुरुपयोग नही होगा? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि विभिन्न जिलों तथा धार्मिक महत्व के स्थानों में धार्मिक प्रयोजन के लिए अनुमति के बाद ली गयी भूमि का ब्यौरा भी सरकार को सार्वजनिक करना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लगभग 60-65 सालों से भू-बन्दोबस्त नही हुआ है तथा उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने इसकी भी संस्तुति की है। राज्य सरकार को चाहिए कि समिति की इस संस्तुति को मानते हुए राज्य में शीघ्र भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आज तक सरकार राज्य में लगे उद्योगों में बड़े पदों पर दूर समूह ‘ग’ व समूह ‘घ’ के पदों पर भी स्थानीय निवासियों को 70 प्रतिशत रोजगार सुनिश्चित नही कर पायी है तो समिति की शिफारिश के अनुसार फिर विभिन्न प्रयोजनों हेतु जो भूमि खरीदी जायेगी उसमें समूह ग व समूह ‘घ’ श्रेणीयो में स्थानीय लोगो को 70 प्रतिशत रोजगार आरक्षण सुनिश्चित करने का दावा कैसे कर रही है? उन्होंने कहा कि भूमि क्रय के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि को बड़ा कर 3 वर्ष करने की अनुशंसा अपने चहेते उद्योगपति और अन्य मित्रों को मदद करना मात्र है।