उत्तराखंड समाचार

डॉ. कुसुम रानी नैथानी को ‘बच्चों के देश ‘ ने किया सम्मानित

आने वाले वर्षों में बाल साहित्य का स्वरूप कैसा हो सकता है।

देहरादून, 19 अगस्त।  अंतरराष्ट्रीय संस्था अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी एवं राष्ट्रीय बाल मासिक पत्रिका ‘बच्चों का देश’ के द्वारा आयोजित पत्रिका के रजत जयंती के अवसर पर राजसमंद में अणुविभा मुख्यालय चिल्ड्रन’स पीस पैलेस में आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम में देहरादून से आमंत्रित की गईं राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त पूर्व प्रधानाचार्या एवं उत्तराखंड जिला पुलिस प्राधिकरण की सदस्या डॉ. कुसुम रानी नैथानी ‘ डॉ. के. रानी’ को उनकी बाल साहित्य साधना के लिए अणुविभा सोसायटी द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय बाल मासिक पत्रिका ‘बच्चों का देश’ ने राजसमंद ( राजस्थान ) में आयोजित बाल साहित्य साधना में अणुविभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश नाहर, पत्रिका के संपादक संचय जैन, उप संपादक प्रकाश तातेर और पंचशील जैन आदि महानुभावों ने सम्मानित कर उनकी साहित्यिक साधना को रेखांकित किया। उक्त जानकारी देते हुए डॉ. कुसुम रानी नैथानी ‘ डॉ. के. रानी’  ने बताया कि बच्चों को प्रिय बाल पत्रिका ‘बच्चों का देश’ ने अपने प्रकाशन के रजत जयंती वर्ष पर पत्रिका से जुड़े देश भर के लगभग 100 रचनाकारों को तीन दिवसीय बालसाहित्य समागम में आमंत्रित कर बाल साहित्य के विभिन मुद्दों पर सात सत्रों में संवाद किया। तीन-तीन साहित्यकारों की टोली ने विभिन्न विद्यालयों में जाकर बच्चों से विविध विधाओं पर संवाद किया तथा अपनी रचनाएं सुनाई और बच्चों के सवालों का जवाब दिए। ‘बाल साहित्य का भावी स्वरूप, चुनौतियां एवं समाधान ‘पर साहित्यकारों के सम्मुख अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ० कुसुम रानी नैथानी ने कहा कि बाल साहित्य  का भविष्य आज के परिवर्तित सामाजिक और तकनीकी परिदृश्य से बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चों के लिए साहित्य न केवल मनोरंजन का साधन है बल्कि उनके मानसिक और भावनात्मक विकास का भी एक महत्वपूर्ण अंग है। इसलिए यह समझना जरूरी है कि आने वाले वर्षों में बाल साहित्य का स्वरूप कैसा हो सकता है। पहले के समय में बाल साहित्य का मुख्य स्रोत किताबें, कहानियाँ, और पारंपरिक लोककथाएँ हुआ करती थीं। इनमें नैतिक मूल्य, ज्ञान, और सामाजिक संस्कारों को सिखाने का प्रयास होता था। लेकिन जैसे-जैसे डिजिटल युग का विस्तार हुआ है, बच्चों की पढ़ने की आदतें भी बदल रही हैं। अब बच्चे किताबों के बजाय स्मार्टफोन, टैबलेट, और कंप्यूटर पर अधिक समय बिता रहे हैं। ऐसे में, बाल साहित्य को भी डिजिटल प्लेटफार्म पर ढालना अनिवार्य हो गया है। ई-पुस्तकें, ऑडियोबुक, और इंटरैक्टिव कहानियाँ बच्चों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं। इनमें एनीमेशन और इंटरैक्टिव तत्वों का समावेश बच्चों के लिए साहित्य को और अधिक रोचक बना रहा है। आधुनिक बाल साहित्य में एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन  विषयवस्तु का विस्तार देखा जा सकता है। आज के बाल साहित्य में केवल नैतिक कहानियाँ ही नहीं बल्कि विज्ञान, पर्यावरण, तकनीकी और सामाजिक मुद्दों पर भी कहानियाँ लिखी जा रही हैं। बच्चों को प्रारंभिक अवस्था से ही जटिल मुद्दों से परिचित कराना आवश्यक है जिससे वे समाज के प्रति संवेदनशील और जागरूक बन सकें। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का संरक्षण, और तकनीकी नवाचार जैसे विषय अब बाल साहित्य का हिस्सा बनते जा रहे हैं। इसके अलावा बाल साहित्य में समावेशिता और विविधता का ध्यान रखना भी आवश्यक है। विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक, और आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए साहित्य का निर्माण करना जरूरी है। बच्चों को यह महसूस होना चाहिए कि उनकी दुनिया का साहित्य में सही और समृद्ध चित्रण हो रहा है। इससे न केवल उनकी आत्म-छवि सुदृढ़ होती है, बल्कि वे अन्य संस्कृतियों और विचारधाराओं के प्रति भी सम्मान विकसित करते हैं। बाल साहित्य में अब सरल और रोचक भाषा के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं और बोलियों का भी प्रयोग बढ़ रहा है। बच्चों को उनकी मातृभाषा में साहित्य उपलब्ध कराना उनकी भाषाई समझ को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इसके साथ ही, बहुभाषी सामग्री का विकास भी बाल साहित्य के भविष्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है, जिससे बच्चे विभिन्न भाषाओं के प्रति रूचि विकसित कर सकें। इस अनूठे समागम में देश के कई राज्यों से आए साहित्यकारों ने बच्चों के लिए साहित्य के माध्यम से और  क्या अच्छा किया जा सकता है, इस पर चिंतन मनन एवं विचार मंथन किया।

 

 

 

 

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