उत्तराखंड समाचार

गर्भावस्था में हेपेटाइटिस का टीका लगाना जरूरी

जानलेवा है हेपेटाइटिस की बीमारीः डाॅ. सुजाता संजय

देहरादून,28 जुलाई। वर्ल्ड हेपेटाईटिस डे के अवसर पर सोसायटी फाॅर हैल्थ एजुकेशन एंड वूमैन इमपावरमेन्ट ऐवेरनेस द्वारा संजय ऑर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेन्टर में गर्भावस्था के दौरान हेपेटाइटिस रोग के बारे में लोगों को जागरूक किया गया। इस कार्यक्रम की मुख्य वक्ता रु 100 अचीवर्स ऑफ इंडिया से सम्मानित डाॅ. सुजाता संजय स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, ने महत्वपूर्ण जानकारी दी। हेपेटाइटिस जानलेवा बीमारी है। जिसमें हेपटाइटिस बी सबसे अधिक प्रभावित करने वाली बीमारी है। इस वर्ष विश्व हेपेटाइटिस दिवस 2023 की थीम श्वी आर नॉट वेटिंगश् है यानी हेपटाइटिस वायरस के गंभीर रूप लेने का इंतजार न करें, बल्कि समय पर बीमारी का उपचार करें। विश्व भर में लगभग 500 मिलियन व्यक्ति हेपेटाइटिस ‘बी’ अथवा हेपेटाइटिस ‘सी’(प्रत्येक 12 व्यक्ति में 1) नामक वायरस से प्रभावित हैं एवं वर्ष भर में लगभग 1 मिलियन व्यक्ति इसके कारण मौत का शिकार हो रहे है। ज्यादातर व्यक्तियों को इस प्रकार के पुराने वायरस से प्रभावित होने का पता ही नही चल पाता। विश्व हेपेटाटिस दिवस को मनाने के पीछे इसका उद्देश्य लोगों को इस प्रकार के हेपेटाइटिस बी व सी के बारे में जागरूक करना, रोकथाम करना, निदान एवं उपचार करना है।हर साल भारत में लगभग ढ़ाई लाख लोग इस बीमारी से मौत का शिकार बनते हैं। 70 से 80 फीसदी लोगों में हेपेटाइटिस के लक्षण नहीं दिखाई देते, इसलिए इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है। लीवर या जिगर शरीर के सबसे बड़े आंतरिक अंगों में से एक है और यह शरीर को विषाक्त पदार्थो से छुटकारा दिलाने सहित 500 से अधिक तरह के कार्य करता है। आदर्श रूप से, लीवर को खुद को सवत साफ करना चाहिए। हालांकि, ज्यादातर लोगों में, लीवर बेहतर तरीके से कार्य नहीं करता है क्योंकि यह पर्यावरण और आहार दोनों तरह के विषाक्त पदार्थो से बुरी तरह से घिरा हुआ है।
उन्होनें बताया कि लीवर में वायरल संक्रमण से होने वाली सूजन को हेपेटाइटिस कहते है। यह लीवर कैंसर का सबसे बड़ा कारण हैै। उन्होंने बताया कि हेपेटाइटिस को पांच श्रेणीयों (ए.बी.सी.डी व ई) में बांटा गया है जिसमें से ए और ई प्रदूषित खाने व पीने से होती है जबकि बी, सी और डी संक्रमित ब्लड व सुई से होती है। उन्होंने बताया है कि सबसे ज्यादा मरीज बी श्रेणी के आते है, उन्होंने कहा कि बीमारी का सबसे खतरनाक स्टेज सी श्रेणी है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को सी श्रेणी के हेपेटाइटिस ज्यादा होने की संभावना रहती है। खराब जीवनशैली, खाने की अस्वास्थ्यकर आदतें और भोजन में प्रयोग किये जाने वाले खतरनाख कीटनाशक और भारी धातुओं की उपस्थिति के कारण हमारे लीवर पर अधिक जोर पड़ता है। ऐसे में, प्राकृतिक विषाकतता (डिटाॅक्सिफिकेशन) विधियों के साथ अपने महत्वपूर्ण अंगों की मदद करे रसायनों और प्रदूषकों के हानिकारक प्रभावों का मुकाबला करने में मदद मिलेगी। यहां कुछ सुरक्षित और प्रभावी तरीके बताये जा रहे हैं जो आपके लीवर को स्वस्थ रखेंगे और इसे बेहतर तरीके से कार्य करने में मदद करेंगे। डाॅ. सुजाता संजय ने बताया कि पीलिया खुद में बीमारी नहीं है, बल्कि अन्य किसी रोग की ओर इशारा है। गर्भावस्था में वैसे भी काफी सतर्कता बरती जाती है। फिर भी किसी तरह के रोग या उसके लक्षणों को कदापि हल्के में नहीं लेना चाहिए। आगे चलकर पीलिया ही हेपेटाइटिस का रूप ले लेता है। जिसके कई रूप हैं इसके प्रति जागरूकता से ही बचाव संभव है। हर 100 में से दो गर्भवती में हेपेटाइटिस से पीड़ित मिल रही हैं। इससे गर्भवती और गर्भस्थ शिशु की मौत भी हो सकती है। हेपेटाइटिस के संक्रमण से लिवर में नुकसान होने लगता है, इससे गर्भावस्था के दौरान पूरे शरीर में खुजली होने लगती है। हेपेटाइटिस डे पर बुधवार को डाक्टर गर्भावस्था में हेपेटाइटिस की जांच के लिए प्रेरित करेंगी। हेपेटाइटिस बी का संक्रमण अधिकतर दूषित सीरिंज, खून या यौन संबंध से हो सकता है। युवाओं में शरीर पर टैटू बनवाना फैशन का हिस्सा बन चुका है। पर शरीर बने टैटू हेपेटाइटिस सी का कारण बन सकते हैं। यही नहीं निडिल से कान छिदवाना या गली मोहल्ले के डेंटल क्लिनिक में दांत साफ करना हेपेटाइटिस बी व सी का कारण बन सकता हैं। उन्होंने कहा कि आजकर शरीर पर टैटू बनवाने का चलन खूब है। एक ही निडिल से कई लोगों को टैटू बनाने से हेपेटाइटिस सी हो सकता है।यह संक्रमित मां से गर्भ में बच्चे को हो सकता है। मां केवल कैरियर भी हो सकती है। बच्चे में इसका संक्रमण रोकने के लिए जन्म के उपरांत 12 घंटे के अंदर हेपेटाटिस-बी वैक्सीन की पहली खुराक एवं इम्मूनोग्लोबुलिंन के इंजेक्शन दिये जाते हैं। शिशु को स्तनपान कराने में परहेज नहीं करना चाहिए। पीलिया होने पर आराम करें एवं डाॅक्टर की निगरानी मेें रहें। हेपेटाइटिस से प्रेगनेन्सी में यह असर होता है कि शुरूआती दिनों में गर्भपात का खतरा, समय से पहले डिलीवरी की चांस, डिलीवरी के बाद रक्तस्राव का डर, गर्भावस्था में गंभीर रूप धारण कर सकता है। यदि किसी वयस्क सदस्य को हेपेटाइटिस बी का संक्रमण होता है तो उसका लिवर डेमेज होने की संभावना 5 से 10 फीसदी तक होती है लेकिन यदि कोई गर्भवती महिला इस बीमारी से संक्रमित है तो उसके बच्चे को हेपेटाइटिस बी संक्रमित होने के चलते लिवर की बीमारी होने की संभावना 90 से 95 फीसदी तक होती है। अब तक हुए शोधों में यह माना जाता है कि हेपेटाइटिस संक्रमित मां से जन्म लेने के दौरान बच्चे के पॉजिटिव होने की संभावना होती है।अधिकतर व्यक्ति जो इस वायरस से प्रभावित होते हैं उनको इसके लक्षणों के बारे में पता ही नही चल पाता यहां तक कि उनका लिवर भी क्षतिग्रस्त हो जाता है। अधिक समय पश्चात् उनका लिवर पूरी तरह से खराब हो चुका होता है।जिसको सिरोसिस कहते है। यदि आपको लिवर सिरासिस है तो आपकी जान को खतरा बन जाता है जो रक्तस्राव, पेट में पानी भर जाना, लिवर कैंसर अथवा कोमा में चले जाना आदि हो सकता है। खून की सामान्य जांच से हेपेटाइटिस बी और सी का पता लगाया जा सकता है, क्योंकि मरीज में शुरूआती लक्षण न दिखने के कारण इस बीमारी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। इस संक्रमण के हाईरिस्क ग्रुप में संक्रमित मां से बच्चे, चिकित्सा पेशे से जुड़े लोग, ऐसे मरीज जिन्हें रक्त चढ़ाया गया हो, सिरिंज से ड्रग लेने वाले आते हैं। इसलिए संक्रमण का पता लगाने के स्कीनिंग सबसे जरूरी है। हेपेटाइटिस बी वायरस से बचाव का एक मात्र उपाय टीकाकरण है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button